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भक्त के लिए मंदिर का त्याग करके जगन्नाथ जी उसके साथ चले गए

श्री जगन्नाथ और माधव दास जी

श्री जगन्नाथ और माधव दास जी

भक्त के लिए मंदिर का त्याग करके जगन्नाथ जी उसके साथ चले गए : अनुपम भक्ति कथा

परिचय
श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की यह कथा वैष्णव भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। यह कथा न केवल भगवान और भक्त के प्रेम को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भक्ति के प्रति भगवान कैसे अपने भक्तों के प्रति समर्पित हो जाते हैं। माधव दास जी की वृंदावन यात्रा और उसमें श्री जगन्नाथ जी का साथ चलना, इस कथा को और भी दिव्य बनाता है।


माधव दास जी का स्वभाव और भक्ति

माधव दास जी, भगवान जगन्नाथ के ऐसे भक्त थे, जो भगवान की सुध लेना कभी नहीं भूलते थे।

यह प्रेम और चिंता, उनकी भक्ति को अन्य भक्तों से अलग बनाता था।


वृंदावन जाने की इच्छा

एक दिन माधव दास जी ने भगवान से कहा कि वे वृंदावन जाना चाहते हैं।


भगवान का साथ चलने का आग्रह

भगवान का कहना था कि वे माधव दास जी के बिना नहीं रह सकते।


वृंदावन यात्रा की शुरुआत

माधव दास जी ने यात्रा शुरू की।


भगवान का प्रकट होना

भूख से व्याकुल माधव दास जी ने एक गांव में भोजन मांगा। बुजुर्ग महिला ने उन्हें भोजन परोसा और कहा,
“आपके बगल में एक सुंदर बालक बैठा है, उसे भी खिलाइए।”

माधव दास जी चौंक गए और बोले,
“मेरे साथ कोई नहीं है।”

महिला ने उत्तर दिया,
“सांवला सा बालक है, घुंघराले बाल और बड़ी-बड़ी आंखें हैं।”

यह सुनकर माधव दास जी समझ गए कि यह और कोई नहीं, स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं, जो अदृश्य रूप में उनके साथ यात्रा कर रहे हैं।

भगवान का अदृश्य संवाद

भोजन समाप्त होने के बाद, माधव दास जी ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की,
“ठाकुर, मैंने तो आपको मना किया था कि आप मेरे साथ मत चलिए। लेकिन आप तो मेरे बिना रह ही नहीं सकते। आपकी यह लीला मेरे लिए एक आशीर्वाद है।”
भगवान ने माधव दास जी के हृदय में कहा,
“माधव, मैं तुम्हारे बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता। तुम्हारी भक्ति मुझे हर समय तुम्हारे पास रहने के लिए मजबूर करती है।”


वृंदावन में प्रवेश

माधव दास जी जब वृंदावन पहुंचे, तो सबसे पहले यमुना जी में स्नान किया।


बिहारी जी का संकेत

जब माधव दास जी निधिवन पहुंचे, तो स्वामी हरिदास जी ने उन्हें दर्शनार्थियों में से बुलाया।


भक्ति का चरम अनुभव

माधव दास जी ने निधिवन में श्री बिहारी जी के दर्शन किए, लेकिन यह अनुभव अद्भुत था। कभी उन्हें बिहारी जी का स्वरूप दिखता, तो कभी जगन्नाथ जी का।


भक्ति का महत्व

यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के बिना अधूरे हैं।


निष्कर्ष

श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति केवल एक मार्ग नहीं, बल्कि भगवान और भक्त के बीच का अटूट प्रेम है। यह कथा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपनी भक्ति को निश्छल और निष्कपट बनाएं।


FAQs

  1. माधव दास जी कौन थे?
    वे श्री जगन्नाथ जी के एक अनन्य भक्त थे।
  2. भगवान ने वृंदावन यात्रा में क्या कहा?
    “मुझे साथ ले चलो। मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं।”
  3. महाप्रसाद का महत्व क्या है?
    यह भगवान के प्रति हमारी भक्ति का प्रतीक है।
  4. इस कथा से क्या सीख मिलती है?
    निष्काम और निश्छल भक्ति ही भगवान को प्रिय है।
  5. भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप क्या है?
    जब भगवान स्वयं अपने भक्त के बिना अधूरे हो जाएं।

“श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की कथा को पढ़कर मन में भक्ति का भाव और गहरा हो जाता है।”


 

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