भक्त के लिए मंदिर का त्याग करके जगन्नाथ जी उसके साथ चले गए : अनुपम भक्ति कथा
परिचय
श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की यह कथा वैष्णव भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। यह कथा न केवल भगवान और भक्त के प्रेम को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भक्ति के प्रति भगवान कैसे अपने भक्तों के प्रति समर्पित हो जाते हैं। माधव दास जी की वृंदावन यात्रा और उसमें श्री जगन्नाथ जी का साथ चलना, इस कथा को और भी दिव्य बनाता है।
माधव दास जी का स्वभाव और भक्ति
माधव दास जी, भगवान जगन्नाथ के ऐसे भक्त थे, जो भगवान की सुध लेना कभी नहीं भूलते थे।
- प्रेममयी पूछताछ:
जब भी वे भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाते, तो पूछते, “आप कैसे हो? भोग ठीक से लगा? सेवा में कोई त्रुटि तो नहीं हुई?” - भगवान का उत्तर:
जगन्नाथ जी कहते, “तुम्हारे जैसे भक्त के कारण ही मैं प्रसन्न रहता हूं।”
यह प्रेम और चिंता, उनकी भक्ति को अन्य भक्तों से अलग बनाता था।
वृंदावन जाने की इच्छा
एक दिन माधव दास जी ने भगवान से कहा कि वे वृंदावन जाना चाहते हैं।
- भगवान की चिंता:
भगवान बोले, “तुम्हारे बिना मेरा मन कैसे लगेगा? भोग अधूरा लगेगा, आरती में आनंद नहीं आएगा।” - माधव दास जी का आग्रह:
उन्होंने भगवान से अनुमति मांगी। भगवान ने कहा, “तुम मुझे साथ ले चलो।”
भगवान का साथ चलने का आग्रह
भगवान का कहना था कि वे माधव दास जी के बिना नहीं रह सकते।
- भक्त का असमंजस:
माधव दास जी बोले, “आप बहुत भारी हैं। मैं आपको कैसे ले जाऊं?” - भगवान का उत्तर:
“मैं हल्का हो जाऊंगा और भूखा रहूंगा, लेकिन मुझे वृंदावन जरूर ले चलो।”
वृंदावन यात्रा की शुरुआत
माधव दास जी ने यात्रा शुरू की।
- भगवान का अदृश्य साथ:
भगवान उनके साथ अदृश्य रूप में चलने लगे। - भूख और प्यास:
तीसरे दिन माधव दास जी को असामान्य रूप से तेज भूख लगी।
भगवान का प्रकट होना
भूख से व्याकुल माधव दास जी ने एक गांव में भोजन मांगा। बुजुर्ग महिला ने उन्हें भोजन परोसा और कहा,
“आपके बगल में एक सुंदर बालक बैठा है, उसे भी खिलाइए।”
माधव दास जी चौंक गए और बोले,
“मेरे साथ कोई नहीं है।”
महिला ने उत्तर दिया,
“सांवला सा बालक है, घुंघराले बाल और बड़ी-बड़ी आंखें हैं।”
यह सुनकर माधव दास जी समझ गए कि यह और कोई नहीं, स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं, जो अदृश्य रूप में उनके साथ यात्रा कर रहे हैं।
भगवान का अदृश्य संवाद
भोजन समाप्त होने के बाद, माधव दास जी ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की,
“ठाकुर, मैंने तो आपको मना किया था कि आप मेरे साथ मत चलिए। लेकिन आप तो मेरे बिना रह ही नहीं सकते। आपकी यह लीला मेरे लिए एक आशीर्वाद है।”
भगवान ने माधव दास जी के हृदय में कहा,
“माधव, मैं तुम्हारे बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता। तुम्हारी भक्ति मुझे हर समय तुम्हारे पास रहने के लिए मजबूर करती है।”
वृंदावन में प्रवेश
माधव दास जी जब वृंदावन पहुंचे, तो सबसे पहले यमुना जी में स्नान किया।
- भूख का समाधान:
उन्होंने रूखे चने खाए और भगवान ने भी उसी प्रसाद को स्वीकार किया। - मंदिर दर्शन:
माधव दास जी निधिवन पहुंचे, जहां श्री हरिदास जी बिहारी जी की सेवा कर रहे थे।
बिहारी जी का संकेत
जब माधव दास जी निधिवन पहुंचे, तो स्वामी हरिदास जी ने उन्हें दर्शनार्थियों में से बुलाया।
- स्वामी जी का कथन:
“बिहारी जी ने तुम्हारा नाम लिया है और तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” - भक्त का विस्मय:
माधव दास जी ने पूछा, “मेरा नाम बिहारी जी को कैसे पता?” स्वामी हरिदास जी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया,
स्वामी जी बोले, “”जगन्नाथ जी और बिहारी जी अलग नहीं हैं। दोनों एक ही हैं।” - इस रहस्योद्घाटन से माधव दास जी भावविभोर हो गए और उनकी भक्ति और प्रगाढ़ हो गई।
भक्ति का चरम अनुभव
माधव दास जी ने निधिवन में श्री बिहारी जी के दर्शन किए, लेकिन यह अनुभव अद्भुत था। कभी उन्हें बिहारी जी का स्वरूप दिखता, तो कभी जगन्नाथ जी का।
- भक्त का आनंद:
इस दिव्य लीला ने माधव दास जी को आनंद और आश्चर्य से भर दिया। वे दिन-रात निधिवन में रोते और अपनी गहरी भक्ति प्रकट करते। - महाप्रसाद की महिमा:
भगवान ने माधव दास जी से कहा, “तुम्हारे खाने से ही मेरा पेट भरता है।” - इस वचन से माधव दास जी ने महाप्रसाद की महिमा को समझा और यह अनुभव किया कि सच्चे भक्त की तृप्ति ही भगवान की तृप्ति है। ( इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )
भक्ति का महत्व
यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के बिना अधूरे हैं।
- निष्काम भक्ति:
निश्छल और निष्कपट भक्ति ही भगवान को प्रिय है। - ठाकुर जी की सुध लेना:
भक्त को भगवान की सेवा और उनकी स्थिति का ध्यान रखना चाहिए। ( डाकुओं ने जब एक भक्त के हाथ पैर काट कर जंगल में फेंक दिया )
निष्कर्ष
श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति केवल एक मार्ग नहीं, बल्कि भगवान और भक्त के बीच का अटूट प्रेम है। यह कथा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपनी भक्ति को निश्छल और निष्कपट बनाएं।
FAQs
- माधव दास जी कौन थे?
वे श्री जगन्नाथ जी के एक अनन्य भक्त थे। - भगवान ने वृंदावन यात्रा में क्या कहा?
“मुझे साथ ले चलो। मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं।” - महाप्रसाद का महत्व क्या है?
यह भगवान के प्रति हमारी भक्ति का प्रतीक है। - इस कथा से क्या सीख मिलती है?
निष्काम और निश्छल भक्ति ही भगवान को प्रिय है। - भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप क्या है?
जब भगवान स्वयं अपने भक्त के बिना अधूरे हो जाएं।
“श्री जगन्नाथ और माधव दास जी की कथा को पढ़कर मन में भक्ति का भाव और गहरा हो जाता है।”