धनतेरस के अनसुने रहस्य ?

धनतेरस के अनसुने रहस्य 

दिवाली, वो रात जब श्री राम अयोध्या लौटे थे ये कहानी तो हम सभी ने सुनी है. जैसे-जैसे श्रीराम अपने घर की ओर बढ़ रहे थे, उनकी आँखों में एक हल्की सी चमक दिखाई दे रही थी। वह रोशनी हजारों दीपों से सजी अयोध्या की रोशनी थी। इसे इस तरह से सजाया गया था कि मानो अंधेरा गायब हो गया हो। हर अयोध्यावासी की आंखों में आशा की किरण थी। 14 वर्षों के इंतजार के बाद उस रात अयोध्या ने अपने राजा श्री राम का स्वागत किया। इस कहानी को सुनने के बाद हम हर साल 5 दिनों तक दिवाली मनाते हैं। लेकिन इन 5 दिनों की और भी कई कहानियां हैं | दिवाली का त्योहार पाँच दिनों तक चलता है, जिनमें हर दिन का अपना पौराणिक और धार्मिक महत्व है। इन दिनों में महाभारत से जुड़े संदर्भ भी उभरते हैं।

धनतेरस और दिवाली: कहानियों से जुड़ी विस्तृत व्याख्या

दिवाली का त्योहार, जो पाँच दिनों तक मनाया जाता है, केवल श्रीराम की अयोध्या वापसी की कथा तक सीमित नहीं है। इसमें महाभारत, जैन धर्म, सिख धर्म और क्षेत्रीय पौराणिक कथाओं की भी गहरी छाप दिखाई देती है। इस लेख में हम प्रत्येक दिन की परंपराओं और उनसे जुड़े महाभारत के प्रसंगों को विस्तार से समझेंगे।

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1. धनतेरस: यमराज और धर्मराज युधिष्ठिर की कथा

धनतेरस का दिन यमराज और मृत्यु से जुड़ी कथाओं को समर्पित है। महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर सत्य और धर्म के प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि युधिष्ठिर के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि धर्म और सत्य का पालन करने से मृत्यु भी टल सकती है।

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की भी पूजा की जाती है, जिन्होंने समुद्र मंथन से अमृत कलश और आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान किया था। यह दिन यमराज से अपने परिवार की रक्षा हेतु सोना-चांदी खरीदने और दीप जलाने की परंपरा का प्रतीक है।


2. नरक चतुर्दशी: श्रीकृष्ण और नरकासुर वध की कथा

नरक चतुर्दशी की कथा महाभारत से जुड़ी है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16,000 स्त्रियों को मुक्ति दिलाई। युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण को सत्यभामा का समर्थन मिला, जो भूमि देवी का अवतार थीं। नरकासुर की मृत्यु से पहले उसने अपनी माँ से मृत्यु की प्रार्थना की थी, और वरदान के अनुसार सत्यभामा ने उसका वध कर दिया।

इस दिन लोग अभ्यंग स्नान करते हैं, जिसमें शरीर की शुद्धि के लिए उबटन और तेल का प्रयोग होता है। यह श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के रक्त से सना शरीर धोने की परंपरा से जुड़ा है।


3. दिवाली: अयोध्या की कथा और महाभारत का संदर्भ

दिवाली का मुख्य दिन रामायण से संबंधित है, लेकिन महाभारत में भी इस दिन का सांकेतिक महत्व है। जैन धर्म के अनुसार, दिवाली के दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जिसे निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सिख धर्म में इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह जी, मुगल किले से 52 राजाओं को रिहा करवा कर लौटे थे। इस अवसर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को दीयों और रोशनी से सजाया जाता है।


4. गोवर्धन पूजा: श्रीकृष्ण और महाबली की कथा

गोवर्धन पूजा का संबंध श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने से है, ताकि गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया जा सके। इस दिन को दक्षिण भारत में राजा महाबली के प्रतीक रूप में भी मनाया जाता है।

महाबली विष्णु के भक्त थे, लेकिन अपने घमंड के कारण उन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर उनसे तीन पग भूमि मांगी और उनके अहंकार को समाप्त किया। वामन के तीसरे पग के साथ महाबली को पाताल लोक भेज दिया गया, लेकिन उनके भक्ति-भाव से प्रसन्न होकर विष्णु ने उन्हें साल में एक बार धरती पर आने का वरदान दिया।


5. भाई दूज: यमराज और यमुनादेवी की कथा

भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। महाभारत से जुड़ी एक कथा के अनुसार, यमराज एक बार अपनी बहन यमुनादेवी से मिलने गए। यमुनादेवी ने उनका तिलक कर स्वागत किया और कई प्रकार के पकवान बनाकर उन्हें भोजन कराया। यमराज ने प्रसन्न होकर घोषणा की कि जो भाई इस दिन अपनी बहन का तिलक करवाएगा, उसे लंबी उम्र और समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस दिन श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे, जिन्होंने उनका तिलक कर स्वागत किया था। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए दीर्घायु और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।


यह विस्तृत लेख दिवाली के पाँचों दिनों की कहानियों को महाभारत और अन्य पौराणिक संदर्भों से जोड़ता है। इन कथाओं में धर्म, प्रेम, त्याग और साहस की भावना छिपी है, जो हमारे जीवन में प्रेरणा का स्रोत बनती हैं।

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