असंख्य दान के बाद भी क्यों भुगतना पड़ा गिरगिट बनने का श्राप : पुण्य, एक भूल और श्रीकृष्ण की कृपा.
परिचय
हिंदू धर्मग्रंथों में अनेक राजा और ऋषियों की कहानियां मिलती हैं, जिनमें धर्म, कर्म और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को बताया गया है। इन्हीं में से एक कथा राजा नृग की है, जो अपने समय के एक महान दानी राजा थे। उन्होंने असंख्य गायों, भूमि, स्वर्ण और रत्नों का दान किया, लेकिन एक छोटी-सी भूल के कारण उन्हें यमलोक में न्याय का सामना करना पड़ा और गिरगिट बनकर जन्म लेना पड़ा। इस भूल से वे कैसे मुक्त हुए और भगवान श्रीकृष्ण ने किस प्रकार उनका उद्धार किया, यह कहानी अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद है।
राजा नृग कौन थे?
राजा नृग इक्ष्वाकु वंश के एक प्रतापी और धर्मपरायण सम्राट थे। वे अपनी न्यायप्रियता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। वे इस बात के लिए विख्यात थे कि वे किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते थे।
उन्होंने हजारों नहीं, बल्कि लाखों गायों का दान किया था। उनकी गौशालाओं में अत्यंत सुंदर और उत्तम नस्ल की गायें थीं, जिनके सींगों पर स्वर्ण और खुरों में चांदी लगी होती थी। वे विशेष रूप से विद्वान, तपस्वी और सदाचारी ब्राह्मणों को गायें दान करते थे।
राजा नृग का मानना था कि दान सबसे बड़ा पुण्य है, और यही उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में सहायक होगा। लेकिन, एक छोटी-सी असावधानी उनके पूरे पुण्यकर्मों पर भारी पड़ गई। ( इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )
राजा नृग की एक छोटी भूल
एक दिन, राजा नृग की गौशाला में गलती से एक ब्राह्मण की गाय आ गई। उनकी सेवा में लगे कर्मचारियों ने उसे पहचानने में भूल कर दी और उसे किसी अन्य ब्राह्मण को दान कर दिया।
कुछ समय बाद, जब मूल ब्राह्मण को पता चला कि उसकी गाय किसी और को दे दी गई है, तो वह राजा नृग के पास आया और अपनी गाय वापस मांगी। लेकिन अब समस्या यह थी कि जिसे गाय दान में मिल चुकी थी, वह उसे छोड़ने को तैयार नहीं था।
दोनों ब्राह्मणों में विवाद बढ़ गया और राजा नृग को न्याय करना पड़ा।
उन्होंने दोनों ब्राह्मणों को समझाने की कोशिश की और बदले में हजारों गायें देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। एक का कहना था कि वह अपनी गाय को किसी भी कीमत पर वापस चाहता है, जबकि दूसरा कहता था कि उसे जो दान में मिला है, वह अब उसका है और वह इसे नहीं छोड़ सकता। ( इसे भी पढे- सबरीमाला मंदिर के रहस्य: भगवान अयप्पा की कथा और 41 दिनों की कठिन तपस्या का महत्व )
यह विवाद राजा नृग के पुण्यकर्मों पर भारी पड़ गया।
राजा नृग को गिरगिट क्यों बनना पड़ा?
जब राजा नृग की मृत्यु हुई, तो उनकी आत्मा यमलोक पहुंची। धर्मराज ने उनसे पूछा कि क्या वे पहले अपने पुण्य का फल भोगना चाहते हैं या पाप का।
राजा नृग ने विनम्रता से उत्तर दिया, “हे धर्मराज! मैं पहले अपने पाप का फल भोगना चाहता हूं, ताकि बाद में मुझे अपने पुण्य का लाभ मिल सके।”
तब धर्मराज ने उन्हें बताया कि उनकी एक भूल—जिसमें उन्होंने एक ब्राह्मण की गाय गलती से किसी और को दान कर दी थी—उनके पूरे पुण्यकर्मों पर भारी पड़ गई है।
इस गलती के कारण, उन्हें गिरगिट बनकर जन्म लेना पड़ा और वे द्वारका के एक सूखे कुएं में गिर गए।
द्वारका के कुएं में फंसे राजा नृग
गिरगिट बने राजा नृग वर्षों तक द्वारका के एक कुएं में पड़े रहे। वहां उन्होंने भयंकर कष्ट झेले। एक महान दानी और चक्रवर्ती सम्राट होने के बावजूद, अब वे एक तुच्छ जीव के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे थे।
लेकिन उनका यह कष्ट तब समाप्त हुआ जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें उद्धार प्रदान किया।
भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नृग का उद्धार कैसे किया?
एक दिन, भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, सांब और अन्य बालक खेलते-खेलते उस कुएं के पास पहुंचे। जब उन्होंने कुएं में देखा, तो वहां एक विशाल गिरगिट पड़ा था।
उन्होंने उसे बाहर निकालने का प्रयास किया। पहले उन्होंने रस्सी डाली, फिर सूती और चमड़े की रस्सियों से भी उसे खींचने का प्रयास किया, लेकिन गिरगिट बाहर नहीं निकला।
आखिरकार, जब वे असफल हो गए, तो वे भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी।
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कुएं के पास आए और उन्होंने अपने बाएं हाथ से गिरगिट को पकड़कर बाहर निकाल दिया।
जैसे ही गिरगिट श्रीकृष्ण के स्पर्श में आया, उसमें एक चमत्कार हुआ—गिरगिट का रूप त्यागकर, वह एक तेजस्वी पुरुष में बदल गया।
राजा नृग ने श्रीकृष्ण को अपनी कथा सुनाई
राजा नृग ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और अत्यंत विनम्रता से बोले, “हे प्रभु! मैं राजा नृग हूं। मैंने अनेक पुण्यकर्म किए, लेकिन एक भूल के कारण मुझे गिरगिट बनना पड़ा। मैं वर्षों तक इस कुएं में पड़ा रहा और अत्यंत पीड़ा सहन की।”
उन्होंने पूरी घटना का वर्णन किया और भगवान श्रीकृष्ण को धन्यवाद दिया कि उनकी कृपा से अब उन्हें मुक्ति मिल रही है।
भगवान श्रीकृष्ण मुस्कराए और कहा, “राजा नृग, यह तुम्हारे कर्मों का ही फल था, लेकिन अब तुम मुक्त हो चुके हो। जाओ, अब स्वर्ग में स्थान प्राप्त करो।”
इसके बाद राजा नृग ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की और दिव्य विमान पर बैठकर स्वर्ग को प्रस्थान कर गए।
इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
यह कथा हमें अनेक महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:
✅ दान में सतर्कता आवश्यक है – दान केवल बड़ी मात्रा में करना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसकी शुद्धता और न्यायसंगतता भी महत्वपूर्ण है।
✅ एक छोटी भूल भी बड़े परिणाम ला सकती है – अनजाने में की गई गलती भी गंभीर दंड का कारण बन सकती है।
✅ पुण्यकर्म मोक्ष की गारंटी नहीं है – मोक्ष प्राप्ति के लिए केवल पुण्यकर्म ही पर्याप्त नहीं, बल्कि भगवान की भक्ति और उनके नाम का स्मरण भी आवश्यक है।
✅ ईश्वर की कृपा ही सबसे बड़ा उद्धार है – केवल भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से ही राजा नृग को मुक्ति मिली, जिससे यह सिद्ध होता है कि भक्ति ही सबसे बड़ा साधन है।
निष्कर्ष
राजा नृग की कथा हमें यह सिखाती है कि दान, पुण्य और अच्छे कर्म अत्यंत आवश्यक हैं, लेकिन उनके साथ सतर्कता भी उतनी ही जरूरी है। श्रीकृष्ण का नाम स्मरण ही हमें समस्त बंधनों से मुक्त कर सकता है।
यदि कोई नाम जप करने वाला साधक है, तो हजारों अपराध होने पर भी उसकी ऐसी दुर्गति नहीं होगी। भगवान श्रीकृष्ण का नाम ही सबसे बड़ा पुण्य है और जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि भी।
“कृष्ण का स्मरण ही सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला है।” 🙏
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. राजा नृग कौन थे?
राजा नृग एक चक्रवर्ती सम्राट और महान दानी थे, जिन्होंने हजारों गायों और अन्य बहुमूल्य वस्तुओं का दान किया था।
Q2. राजा नृग को गिरगिट क्यों बनना पड़ा?
एक गलती के कारण—उन्होंने अनजाने में एक ब्राह्मण की गाय किसी अन्य ब्राह्मण को दान कर दी थी। इस भूल के कारण, उन्हें गिरगिट के रूप में जन्म लेना पड़ा।
Q3. राजा नृग का उद्धार किसने किया?
राजा नृग का उद्धार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया। उनके स्पर्श से राजा नृग ने अपना पूर्व स्वरूप प्राप्त कर लिया।
Q4. इस कथा से क्या सीख मिलती है?
यह कथा हमें सिखाती है कि केवल पुण्यकर्म ही पर्याप्त नहीं होते, बल्कि ईश्वर की भक्ति और उनके नाम का स्मरण ही मोक्ष का मार्ग है।
Q5. राजा नृग की कथा का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
यह कथा बताती है कि दान का महत्व तभी है जब वह सही ढंग से किया जाए। इसके साथ ही, यह भी दर्शाती है कि श्रीकृष्ण की भक्ति ही सबसे बड़ा पुण्य है।
🔷 कृपया इस लेख को शेयर करें और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें फॉलो करें! 🚀
💛 “भगवान का नाम ही सबसे बड़ी दौलत है!” 💛