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श्री सूरदास जी और श्यामा-श्याम की अनोखी लीला

श्री सूरदास जी और श्यामा-श्याम की अनोखी लीला 

श्री सूरदास जी और श्यामा-श्याम की अनोखी लीला 

श्री सूरदास जी और श्यामा-श्याम की अनोखी लीला 

परिचय

संत सूरदास जी भारतीय भक्तिकाल के अद्वितीय संत थे, जिनकी भक्ति और रचनाएं भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित थीं। उनकी दृष्टिहीनता उनके भक्ति पथ में कभी बाधा नहीं बनी। यह कथा सूरदास जी की भक्ति और भगवान की असीम कृपा का ऐसा अद्भुत प्रसंग है, जो हर भक्त को प्रेरणा देता है।


ठाकुर जी का गुप्त विहार

गोवर्धन में श्रीनाथ जी के मंदिर में प्रतिदिन राजभोग आरती के बाद ठाकुर जी अपने भक्तों के पास गुप्त रूप से जाया करते थे। एक दिन, जैसे ही आरती समाप्त हुई, ठाकुर जी ने मंदिर के कपाट बंद होने के बाद अपनी यात्रा शुरू की। तभी श्रीजी ने उन्हें रोक लिया और पूछा,
“कहां जा रहे हो?”

ठाकुर जी बोले,
“बस, एक भक्त से मिलने जा रहा हूं।”
श्रीजी ने हंसते हुए कहा,
“तो मैं भी चलूंगी।”

ठाकुर जी ने उन्हें मना करते हुए कहा,
“आपको मेरे साथ जाने की आवश्यकता नहीं है।”
लेकिन श्रीजी अड़ गईं और बोलीं,
“यदि मुझे साथ नहीं ले गए, तो मैं गोसाई जी से शिकायत कर दूंगी कि आप आरती के बाद कहीं और चले जाते हैं।”

ठाकुर जी ने हार मानकर कहा,
“ठीक है, लेकिन आप वादा करें कि शांत रहेंगी और किसी पर कृपा नहीं करेंगी।”


सूरदास जी की कुटिया में भगवान का आगमन

सूरदास जी अपनी कुटिया में बैठे भक्ति में लीन थे। उनके पद की पंक्तियां थीं:
“अखियां हरि दर्शन की प्यासी।”
ठाकुर जी और श्रीजी चुपचाप कुटिया में आकर एक कोने में बैठ गए। ठाकुर जी ने धीरे से कहा,
“श्रीजी, कृपया शांति रखें। सूरदास जी को हमारी उपस्थिति का पता नहीं चलना चाहिए।”

लेकिन श्रीजी के नेत्रों में आनंद के आंसू छलकने लगे। उनका प्रेम और भाव देखकर ठाकुर जी ने कहा,
“आपकी कृपा सब पर बरस जाती है, कृपया संयम रखें।”


सूरदास जी का नाटक

सूरदास जी ने अपने आंतरिक ज्ञान से समझ लिया कि श्यामा-श्याम उनके पास आ गए हैं। उन्होंने अचानक अपनी लाठी उठाई और कुटिया से बाहर जाने लगे।

श्रीजी घबराकर बोलीं,
“ये कहां जा रहे हैं? कहीं गिर न जाएं।”
ठाकुर जी मुस्कराते हुए बोले,
“ये जान गए हैं कि हम यहां हैं। अब कोई नई लीला करेंगे।”

सूरदास जी चलते-चलते एक गड्ढे के पास पहुंच गए और उसमें गिरने का नाटक करने लगे। श्रीजी ने तुरंत ठाकुर जी से कहा,
“इन्हें बचाइए, नहीं तो ये गड्ढे में गिर जाएंगे।”

ठाकुर जी ने अपनी कमर से काली कमरी निकाली और श्रीजी की चुनरी के साथ बांधकर सूरदास जी की ओर फेंकी।


कृपा की लीला

सूरदास जी ने पटका पकड़ा और खींचते ही उसमें से इत्र की सुगंध महसूस की। वह समझ गए कि यह सुगंध ठाकुर जी और श्रीजी के श्रृंगार की है। जैसे ही उन्होंने पटका पकड़कर खुद को बाहर खींचा, उन्होंने मन ही मन सोचा,
“यह सुगंध तो केवल मेरे नंदनंदन और श्रीजी के पास ही हो सकती है।”

बाहर आते ही सूरदास जी ने श्रीजी और ठाकुर जी के चरण पकड़ लिए। उन्होंने कहा,
“आज मैं जान गया कि आप दोनों साक्षात प्रकट हो गए हैं। अब मुझे अपने नेत्र प्रदान करें ताकि मैं आपको देख सकूं।” इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )


श्यामा-श्याम का युगल दर्शन

श्रीजी ने अपने करकमलों से सूरदास जी के नेत्रों पर हाथ रखा और उन्हें दृष्टि प्रदान की। सूरदास जी ने पहली बार श्यामा-श्याम के युगल स्वरूप का दर्शन किया। वह भावविभोर हो गए और बोले,
“आप दोनों का यह दिव्य स्वरूप देखकर मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मुझे पुनः अंधा बना दीजिए। मैंने आपके दर्शन कर लिए, अब संसार को देखने की कोई इच्छा नहीं है।”

ठाकुर जी और श्रीजी ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।


कथा का संदेश: रस से रास तक

यह कथा भक्ति के सर्वोच्च स्वरूप को दर्शाती है। सूरदास जी का प्रेम, उनकी भक्ति, और उनकी प्रार्थना ने भगवान को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने स्वयं प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए।

यह कथा यह भी सिखाती है कि भक्त का रस (भक्ति का आनंद) जब भगवान की कृपा से रास (भगवान के साथ लीला) में बदल जाता है, तो वही भक्ति का चरम है।


निष्कर्ष

सूरदास जी और ठाकुर जी की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में न तो दिखावे की आवश्यकता है और न ही किसी विशेष स्थान की। यदि भाव शुद्ध और निष्ठा सच्ची हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के पास आते हैं।

सूरदास जी ने अपने पदों के माध्यम से यह संदेश दिया कि भक्ति में शुद्ध प्रेम और समर्पण होना चाहिए। यह कथा हमें यह भी प्रेरणा देती है कि भक्ति को रस से युक्त करना चाहिए, ताकि हमारा जीवन भगवान के लिए मधुर और प्रिय बन सके।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. सूरदास जी कौन थे?
सूरदास जी भक्तिकाल के महान संत और भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से भक्ति रस का प्रसार किया।

2. ठाकुर जी सूरदास जी के पास क्यों गए?
ठाकुर जी सूरदास जी के पदों और भक्ति से अत्यंत प्रसन्न थे, इसलिए वे उनकी भक्ति का आनंद लेने के लिए उनके पास गए।

3. श्रीजी की भूमिका क्या थी?
श्रीजी ने सूरदास जी पर कृपा करते हुए उन्हें नेत्रदान दिया, जिससे उन्होंने श्यामा-श्याम के युगल स्वरूप का दर्शन किया।

4. यह कथा हमें क्या सिखाती है?
यह कथा सिखाती है कि सच्ची भक्ति भगवान को अपने भक्त के पास आने के लिए बाध्य कर देती है।

5. रस और रास में क्या अंतर है?
रस भक्ति का वह स्वरूप है जिसमें भक्त भगवान के गुण गाते हैं, जबकि रास वह स्थिति है जब भगवान स्वयं प्रकट होकर भक्त के साथ लीला करते हैं।

बोलो श्री राधा-कृष्ण भगवान की जय! ( डाकुओं ने जब एक भक्त के हाथ पैर काट कर जंगल में फेंक दिया )


 

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