इस भक्त के लिए ठाकुर जी ने खुद से की खुद की आरती

श्री हरिवंश महाप्रभु जी का बाल्यकाल और ठाकुर जी के प्रति अद्भुत प्रेम : इस भक्त के लिए ठाकुर जी ने खुद से की खुद की आरती 

परिचय

श्री हरिवंश महाप्रभु जी का जीवन भक्ति और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनका बाल्यकाल विशेष रूप से उनकी ठाकुर जी के प्रति अनन्य निष्ठा और प्रेम का प्रमाण है। इस कथा में उनकी बाल्य अवस्था की एक ऐसी घटना का वर्णन है, जो भगवान और भक्त के अनूठे संबंध को उजागर करती है।

 Harivansh Mahaprabhu childhood


बाल्यकाल में ठाकुर जी के प्रति अनन्य प्रेम

चरणामृत और भोग का महत्व

श्री हरिवंश महाप्रभु जी बचपन से ही भगवान राधा-कृष्ण के प्रति अत्यंत समर्पित थे। उनका नियम था कि वे केवल ठाकुर जी का चरणामृत ग्रहण करते और ठाकुर जी को भोग लगाए बिना कोई भोजन नहीं करते थे। उनका मानना था कि ठाकुर जी का प्रसाद ही सच्चा भोजन है।

रात्रि में भूख लगने पर घटना का प्रारंभ

एक रात्रि की बात है, जब बालक हरिवंश जी को अचानक भूख लगी। उन्होंने अपनी माता से भोजन मांगा। माता ने कहा, “बेटा, इतनी रात में क्या भोजन बनाऊं?” बालक ने उत्तर दिया, “जो भी बना हो, पहले ठाकुर जी को भोग लगाओ, तभी मैं खाऊंगा।”

माता-पिता की असमर्थता

माता-पिता ने समझाने की कोशिश की, “लाला, ठाकुर जी इस समय विश्राम कर रहे हैं। रात को उन्हें उठाना उचित नहीं है।” लेकिन बालक हरिवंश ने अटल भाव से कहा, “यदि ठाकुर जी का भोग नहीं लगा, तो मैं भूखा ही रहूंगा।”

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ठाकुर जी के प्रति समर्पण और रुदन

ठाकुर जी को उठाने की जिद

बालक हरिवंश जी की भूख केवल भोजन की नहीं थी; वह ठाकुर जी के प्रसाद की थी। उनकी यह अनन्य भक्ति माता-पिता को चकित कर रही थी। माता-पिता ने उन्हें मनाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह रोते रहे और ठाकुर जी का भोग लगाने की जिद करते रहे।

रुदन से जागे ठाकुर जी और श्री राधा रानी

महाप्रभु जी का रुदन केवल माता-पिता तक सीमित नहीं रहा। उनकी पुकार ने ठाकुर जी और श्री राधा रानी को जागृत कर दिया। ठाकुर जी ने श्री राधा रानी से कहा, “देखो, हमारा प्रिय भक्त भूखा है और हमारे प्रसाद के बिना कुछ नहीं खाएगा। हमें उसे स्वयं प्रसाद देना होगा।”    इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )

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ठाकुर जी की दिव्य लीला

चरणामृत और भोग की तैयारी

ठाकुर जी ने अपनी झारी में जल लेकर अपने चरण धोए और चरणामृत तैयार किया। इसके बाद उन्होंने श्री राधा रानी से कहा, “हमारा प्रिय भक्त केवल हमारा प्रसाद ग्रहण करेगा। उसे यह चरणामृत और भोग तुरंत प्रदान करना होगा।”

भोग और प्रसाद का वितरण

ठाकुर जी ने भोग लगाया और श्री राधा रानी ने उसे बालक हरिवंश जी के लिए तैयार किया। ठाकुर जी ने स्वयं वह प्रसाद बालक के पास भेजा।


माता-पिता का चमत्कारिक अनुभव

मंदिर में दृश्य

अगली सुबह, जब माता-पिता ने मंदिर के कपाट खोले, तो उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा। ठाकुर जी और श्री राधा रानी ने स्वयं श्रृंगार किया हुआ था। चरणामृत का पात्र और भोग का बर्तन मंदिर में रखा हुआ था। यह देखकर माता-पिता का हृदय आनंद और आश्चर्य से भर गया।

बालक को चरणामृत और भोग का प्रदान

माता-पिता ने तुरंत वह चरणामृत और भोग बालक हरिवंश जी को प्रदान किया। इसे ग्रहण करते ही बालक ने प्रसन्न होकर भगवान का धन्यवाद किया और सो गए। इसे भी जरूर पढे-  क्या हुआ जब नासा ने भेजे एलियन को संदेश )

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भक्ति और समर्पण का संदेश

महाप्रभु जी का नियम

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि श्री हरिवंश महाप्रभु जी का जीवन भक्ति और समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने सिखाया कि ठाकुर जी के प्रसाद और चरणामृत के बिना कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।

ठाकुर जी की कृपा

यह घटना दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों की सच्ची भक्ति को कभी अनदेखा नहीं करते। जब भक्त सच्चे मन से पुकारता है, तो भगवान स्वयं उसकी सहायता के लिए प्रकट होते हैं।


निष्कर्ष

श्री हरिवंश महाप्रभु जी की इस कथा से हमें भक्ति, समर्पण और भगवान की कृपा का सच्चा अर्थ समझने को मिलता है। उनकी बाल्यकाल की यह घटना यह सिखाती है कि यदि भक्ति सच्ची हो, तो भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं और भक्त की हर आवश्यकता को पूरा करते हैं।


FAQs

  1. श्री हरिवंश महाप्रभु जी का नियम क्या था?
    वह केवल ठाकुर जी का चरणामृत और भोग ग्रहण करते थे।
  2. ठाकुर जी ने इस कथा में क्या लीला की?
    ठाकुर जी ने स्वयं जागकर चरणामृत और भोग तैयार किया और बालक हरिवंश जी को प्रदान किया।
  3. इस कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
    यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति भगवान को प्रसन्न करती है और वह अपने भक्तों की हर पुकार सुनते हैं।
  4. महाप्रभु जी के माता-पिता का अनुभव क्या था?
    उन्होंने मंदिर में ठाकुर जी और श्री राधा रानी को स्वयं श्रृंगार और भोग लगाए हुए देखा।
  5. इस कथा का मुख्य संदेश क्या है?
    भक्ति और समर्पण से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।

 Harivansh Mahaprabhu

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