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सहारनपुर के सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर की अद्भुत परंपरा: पहले करें बाबा भूरा देव के दर्शन

पहले करें बाबा भूरा देव के दर्शन

पहले करें बाबा भूरा देव के दर्शन

उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक, सहारनपुर स्थित सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर, नवरात्र के समय भक्तों के अद्वितीय आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन जाता है। इस मंदिर की धार्मिक महत्ता और यहाँ की परंपराएं सदियों पुरानी हैं, और आज भी भक्त यहां आकर माँ शाकंभरी का आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। लेकिन सहारनपुर के सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर की अद्भुत परंपरा है—पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करना और उन्हें प्रसाद चढ़ाना।

क्यों है भूरा देव के दर्शन अनिवार्य?

पुजारी राजेंद्र शर्मा के अनुसार, सिद्धपीठ पर मां शाकंभरी देवी के दर्शन करने से पूर्व भक्तों को बाबा भूरा देव के मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाना और उनके दर्शन करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। ऐसा करने पर ही भक्त माँ शाकंभरी के दर्शन का पूरा फल प्राप्त कर पाते हैं। इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है, जो इस धार्मिक स्थल की महत्ता को और भी बढ़ा देती है।

भूरा देव का योगदान और वीरगति की कथा

पुजारी राजन शर्मा बताते हैं कि पौराणिक कथाओं में बाबा भूरा देव का संक्षिप्त लेकिन अत्यधिक महत्वपूर्ण उल्लेख है। जब माँ शाकंभरी देवी और राक्षसों के बीच भीषण युद्ध हुआ था, तब बाबा भूरा देव भी इस युद्ध में देवी माँ के अनन्य भक्त के रूप में सम्मिलित हुए थे। उन्होंने राक्षसों से युद्ध करते हुए अद्वितीय पराक्रम का प्रदर्शन किया, लेकिन दुर्भाग्यवश इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।

माँ शाकंभरी ने दिया अमरता का वरदान

कथा के अनुसार, युद्ध समाप्ति के बाद माँ शाकंभरी देवी ने युद्ध स्थल पर अपने प्रिय भक्त भूरा देव को मृत अवस्था में देखा। अपनी करुणा और ममतामयी शक्ति के बल पर माँ शाकंभरी ने बाबा भूरा देव को फिर से जीवित कर दिया। माँ शाकंभरी की इस कृपा से प्रसन्न होकर भूरा देव ने उनसे एक वरदान मांगा। उन्होंने माँ से कहा कि वे हमेशा उनके चरणों में रहकर भक्ति करना चाहते हैं।

माँ शाकंभरी ने उनकी इस भक्तिभावना से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया कि जो भी भक्त सिद्धपीठ पर माँ के दर्शन करने आएगा, उसे पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करने होंगे। यदि कोई भक्त ऐसा नहीं करेगा, तो उसे माँ शाकंभरी के दर्शन का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करने के बाद ही माँ शाकंभरी देवी के मंदिर में प्रवेश किया जाता है।

श्रद्धालुओं के लिए यह परंपरा क्यों है महत्वपूर्ण?

यह परंपरा भक्तों के लिए माँ शाकंभरी की अनुकंपा को प्राप्त करने का अनिवार्य चरण है। यह न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भक्ति में समर्पण और सेवा की कितनी महत्ता है। बाबा भूरा देव माँ शाकंभरी के परम भक्त और उनके चरणों के रक्षक माने जाते हैं। उनकी भक्ति, तपस्या, और माँ शाकंभरी के प्रति उनका समर्पण भक्तों को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा के बिना देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त नहीं हो सकती।

निष्कर्ष

सहारनपुर स्थित माँ शाकंभरी देवी मंदिर की यह परंपरा भक्तों के मन में गहरी आस्था और श्रद्धा का भाव उत्पन्न करती है। बाबा भूरा देव के दर्शन और माँ शाकंभरी की पूजा के इस क्रम के माध्यम से भक्तों को यह सीखने का अवसर मिलता है कि भक्ति में सच्चाई, सेवा, और समर्पण कितना आवश्यक है। माँ शाकंभरी के आशीर्वाद के साथ-साथ यह परंपरा हमें सिखाती है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए भक्त का हृदय पूर्णत: समर्पित और नि:स्वार्थ होना चाहिए।

इस प्रकार, हर भक्त जो सिद्धपीठ पर आता है, वह पहले बाबा भूरा देव को अपना सम्मान और भक्ति अर्पित करता है, और फिर माँ शाकंभरी देवी के दर्शन कर अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने की प्रार्थना करता है।
!! जय माँ शाकंभरी  !!

 

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