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उच्चैठ भगवती मंदिर: जहां मूर्ख कालिदास बने महाकवि, जानिए पूरी कहानी

उच्चैठ भगवती मंदिर: जहां मूर्ख कालिदास बने महाकवि, जानिए पूरी कहानी

उच्चैठ भगवती मंदिर, बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में स्थित एक प्राचीन सिद्धपीठ है, जो मां काली को समर्पित है। इस मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यहीं पर माता काली के आशीर्वाद से मूर्ख माने जाने वाले कालिदास महान कवि बने थे। इस मंदिर में मां भगवती की काले शिलाखंड पर स्थापित मूर्ति है, जिसमें देवी सिंह पर कमल के आसन पर विराजमान हैं, लेकिन उनका सिर दिखाई नहीं देता। इस कारण उन्हें “छिन्नमस्तिका दुर्गा” के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के समीप एक श्मशान भूमि है, जहां आज भी तंत्र साधना की जाती है।

कालिदास की कथा:

यहां की सबसे प्राचीन मान्यता यह है कि कालिदास, जो एक महामूर्ख माने जाते थे, अपनी पत्नी विद्योत्तमा के तिरस्कार से आहत होकर मां भगवती की शरण में उच्चैठ आ गए थे। उस समय यहां एक संस्कृत पाठशाला थी, जो एक नदी के पार स्थित थी। कालिदास ने वहां रहने वाले छात्रों के लिए खाना बनाने का कार्य स्वीकार कर लिया। एक दिन, जब भारी बाढ़ के कारण छात्र नदी पार नहीं कर पाए, तो मंदिर में संध्या दीप जलाने की जिम्मेदारी कालिदास को सौंपी गई। सबने इसे मज़ाक में लिया और उन्हें इस कार्य के लिए भेज दिया।

कालिदास ने बिना सोचे-समझे नदी में कूद कर किसी तरह मंदिर तक पहुंचकर दीप जलाया। जब निशानी के तौर पर कुछ लगाने की बारी आई, तो उन्होंने मां भगवती के मुख पर कालिख लगा दी। तभी मां काली प्रकट हुईं और बोलीं, “रे मूर्ख कालिदास, तुमने मंदिर में कोई और जगह नहीं पाई?” इसके बाद माता ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे रात भर जो भी पुस्तक स्पर्श करेंगे, वह उन्हें कंठस्थ हो जाएगी। कालिदास ने इस वरदान का लाभ उठाया और विद्वान बने। उन्होंने “अभिज्ञान शाकुंतलम”, “कुमार संभव”, और “मेघदूत” जैसी महान कृतियों की रचना की।

मंदिर की महत्ता:

मंदिर के पास आज भी वह नदी और संस्कृत पाठशाला के अवशेष देखे जा सकते हैं। मंदिर परिसर में कालिदास के जीवन से जुड़ी अनेक चित्रकथाएं चित्रांकित हैं, जो इस पवित्र स्थान के महत्व को दर्शाती हैं। भगवान श्री राम भी जनकपुर यात्रा के दौरान इस मंदिर में आए थे। यहां मां दुर्गा के नवम रूप, सिद्धिदात्री, के रूप में पूजा होती है, और भक्तों का मानना है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता से कुछ मांगता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

उच्चैठ भगवती में विशेष आयोजन:

यह सिद्धपीठ साल भर श्रद्धालुओं से भरा रहता है, लेकिन नवरात्र के समय यहां विशेष पूजा, बलिदान और तंत्र साधना का आयोजन होता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं और उनकी कृपा से अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। यह स्थान संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपतियों के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।

उच्चैठ देवी स्थान तक कैसे पहुंचे:

यह मंदिर मधुबनी जिले के बेनीपट्टी से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन मधुबनी है, जहां से आप टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यह स्थान दरभंगा, सीतामढ़ी और मधुबनी से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

मुख्य तथ्य:

  1. उच्चैठ भगवती मंदिर मां काली को समर्पित एक सिद्धपीठ है।
  2. यहां मूर्ख माने जाने वाले कालिदास ने माता के आशीर्वाद से महान कवि बनने का वरदान पाया।
  3. मंदिर में देवी छिन्नमस्तिका के रूप में पूजी जाती हैं।
  4. यह स्थान तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है।
  5. नवरात्र के समय यहां विशेष पूजा और बलिदान का आयोजन होता है।
  6. यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  7. भगवान श्री राम भी जनकपुर यात्रा के समय इस मंदिर में आए थे।
  8. मंदिर के पास कालिदास की कथा से जुड़ी चित्रकथाएं प्रदर्शित हैं।
  9. निकटतम रेलवे स्टेशन मधुबनी है, और मंदिर तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
  10. यह स्थान पूरे साल श्रद्धालुओं से भरा रहता है, लेकिन नवरात्रि के समय विशेष भीड़ होती है।

यह कथा और मंदिर की महत्ता इसे भारतीय धार्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा बनाती है, जहां आस्था और इतिहास एक साथ मिलकर एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।

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