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गुरु वचनों की अद्भुत शक्ति – एक साधारण शब्द से भगवान के दर्शन की चमत्कारी कथा

जब गुरु ने अनजाने में दिया मंत्र – धत् गपोचन

जब गुरु ने अनजाने में दिया मंत्र – धत् गपोचन

गुरु वचनों की अद्भुत शक्ति – एक साधारण शब्द से भगवान के दर्शन की चमत्कारी कथा

📖 परिचय

भक्ति और विश्वास की शक्ति अनंत होती है। जब कोई व्यक्ति अपने गुरु के वचनों पर अटूट श्रद्धा रखता है और पूरी निष्ठा से नाम जप करता है, तो भगवान स्वयं उसके सामने प्रकट होते हैं। यह कथा एक ऐसे अनपढ़, सीध-साधे ग्रामीण भक्त की है, जिसने केवल अपने गुरु की बात मानकर एक साधारण शब्द का जाप किया और अंततः भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के दर्शन पाए। आइए इस प्रेरणादायक कथा को विस्तार से जानते हैं।


गाँव का सीधा-साधा भक्त और उसका भक्ति पथ

गाँव में एक सीधा-साधा व्यक्ति था, जिसका जीवन पूरी तरह से पशु-पालन और गाय चराने में बीतता था। उसने कभी कथा-प्रवचन नहीं सुने थे और न ही भक्ति-मार्ग पर ध्यान दिया था। वह केवल अपने दैनिक कार्यों में लगा रहता था और उसे कभी यह विचार भी नहीं आया कि भगवान की भक्ति भी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है।

एक दिन उसके कुछ मित्रों ने उसे टोकते हुए कहा—

“तुम्हारी पूरी जिंदगी पशुओं के साथ ही बीत रही है। न तुम कथा सुनते हो, न भक्ति करते हो। कभी तो भगवान की बात सुनो!”

उनके इन शब्दों ने उसके मन में हलचल मचा दी। उसने सोचा कि शायद उसे भी एक बार सत्संग में जाकर कथा सुननी चाहिए।


पहली बार कथा सुनने का निर्णय और जीवन बदल देने वाली बात

वह भक्त पहली बार कथा सुनने गया। वहाँ संत प्रवचन कर रहे थे—

“जिसने मनुष्य जन्म लेकर गुरु मंत्र नहीं लिया और नाम जप नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ है। ऐसा मनुष्य तो मुर्दे के समान है।”

इन वचनों ने उसके हृदय को झकझोर दिया। यह बात उसके मन में बैठ गई कि बिना गुरु मंत्र के जीवन व्यर्थ है। कथा समाप्त होने के बाद भी यह विचार उसके मन में घूमता रहा और उसने निश्चय किया कि वह भी गुरु मंत्र अवश्य लेगा।


गुरु मंत्र की चाह और गुरु से भेंट

अगले दिन वह फिर कथा में पहुँचा और प्रवचन समाप्त होने के बाद कथा वाचक से जाकर बोला—

“पंडित जी, आपने कहा था कि बिना गुरु मंत्र के जीवन व्यर्थ है। कृपया मुझे भी गुरु मंत्र दें!”

पंडित जी ने उसे टालते हुए कहा—

“कथा के आखिरी दिन आना, तब तुम्हें गुरु मंत्र दूँगा।”

वह भक्त संतोष कर बैठ गया, लेकिन उसके मन में केवल एक ही उद्देश्य था—गुरु मंत्र लेना और भक्ति करना। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )


जब गुरु ने अनजाने में दिया मंत्र – “धत् गपोचन”

कथा के आखिरी दिन जब प्रवचन समाप्त हुआ, तो पंडित जी शौच के लिए लोटा लेकर जा रहे थे। भक्त उनके पीछे-पीछे चल दिया और आग्रह करने लगा—

“पंडित जी, कृपया अब तो गुरु मंत्र दे दीजिए!”

पंडित जी को जल्दी थी और वह भक्त बार-बार उन्हें परेशान कर रहा था। उन्होंने झुंझलाकर कहा—

“धत् गपोचन!”

यह एक साधारण शब्द था, जिसे पंडित जी ने गुस्से में कह दिया था, लेकिन उस भक्त ने इसे ही गुरु मंत्र मान लिया।


सच्ची श्रद्धा – जब साधारण शब्द बना गुरु मंत्र

वह खुशी-खुशी अपने घर लौटा और सबको बताया—

“अब मुझे गुरु मंत्र मिल गया है! मैं अब से केवल भजन करूँगा!”

वह दिन-रात “धत् गपोचन” मंत्र का जाप करने लगा। हालाँकि, इसमें न तो कोई भगवान का नाम था, न ही कोई विशेष अर्थ, लेकिन उसकी भक्ति सच्ची थी।


भगवान श्रीकृष्ण का भक्त पर अपार स्नेह

भगवान श्रीकृष्ण ने भक्त की सच्ची निष्ठा देखी और देवी रुक्मिणी से कहा—

“रुक्मिणी, आज हमें अपने एक सच्चे भक्त के दर्शन करने चलना चाहिए!”

रुक्मिणी जी ने कहा—

“आप इतने समय बाद किसी भक्त की चर्चा कर रहे हैं। अवश्य ही यह कोई महान भक्त होगा!”

भगवान और रुक्मिणी जी साधारण वेश में उस भक्त के गाँव पहुँचे।


जब भक्त ने रुक्मिणी जी को पहचान लिया

रुक्मिणी जी पहले अकेले उस भक्त के पास पहुँचीं और उससे पूछा—

“तुम किसका भजन कर रहे हो?”

भक्त जप करता रहा और उत्तर नहीं दिया। जब उन्होंने बार-बार पूछा, तो भक्त झुंझलाकर बोला—

“तुम्हारे पति का!”

रुक्मिणी जी चौंक गईं और वापस भगवान के पास जाकर बोलीं—

“यह भक्त बहुत महान है! यह पहले से जानता है कि मैं कौन हूँ!”

भगवान मुस्कुराए और बोले—

“हाँ, तभी तो मैं इसे देखने आया हूँ!”


भगवान का बचपन का नाम – “धत् गपोचन”

रुक्मिणी जी ने भगवान से पूछा—

“यह कौन सा नाम है जो यह भक्त जप रहा है? यह तो किसी शास्त्र में नहीं लिखा!”

भगवान मुस्कुराकर बोले—

“यह मेरा बाल्यकाल का नाम है। जब मैं माखन चोरी करता था, तब मैया ने मुझे ‘धत् गपोचन’ कहा था। इस भक्त ने मेरे उसी बचपन के नाम को गुरु मंत्र मान लिया।”

भगवान ने भक्त के प्रति अपनी अपार कृपा का परिचय दिया और उसके सच्चे प्रेम को स्वीकार किया।

 ( इसे भी पढे- सबरीमाला मंदिर के रहस्य: भगवान अयप्पा की कथा और 41 दिनों की कठिन तपस्या का महत्व )

 


निष्कर्ष: गुरु वचनों पर विश्वास रखें और भक्ति में संदेह न करें

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हम अपने गुरु वचनों पर अटूट विश्वास रखते हैं और पूरी श्रद्धा से भक्ति करते हैं, तो भगवान स्वयं हमारे सामने प्रकट होते हैं।

भक्त ने बिना किसी संदेह के जो शब्द सुना, उसी को गुरु मंत्र मान लिया और निष्कलंक भक्ति से उसे जपने लगा। यही सच्ची भक्ति का प्रमाण है।

अगर हम भी पूर्ण श्रद्धा से “राधा-राधा” या “राम-राम” का जाप करें, तो क्या हमें भगवान नहीं मिलेंगे?


❓FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. “धत् गपोचन” का क्या अर्थ है?

👉 यह भगवान श्रीकृष्ण के बचपन का एक नाम था, जिसे माता यशोदा ने प्रेम से कहा था।

2. क्या बिना समझे नाम जपने से लाभ होता है?

👉 हाँ, यदि भक्ति सच्ची और निष्कपट हो, तो भगवान भक्त की भावना को समझते हैं।

3. क्या गुरु वचनों पर पूर्ण विश्वास रखना जरूरी है?

👉 हाँ, क्योंकि गुरु मार्गदर्शक होते हैं और उनके वचन पालन से आध्यात्मिक उन्नति होती है।

4. क्या साधारण लोग भी भगवान के दर्शन कर सकते हैं?

👉 हाँ, सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान अवश्य प्रकट होते हैं।

5. इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?

👉 गुरु वचनों पर विश्वास करें, संदेह न करें और निष्कलंक भक्ति करें।


🚩 जय श्री राधे! 🚩

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