भक्ति की परीक्षा: जब भगवान ने अपने सबसे प्रिय भक्त को डांटकर बाहर निकाल दिया

भक्ति की परीक्षा: जब भगवान ने अपने सबसे प्रिय भक्त को डांटकर बाहर निकाल दिया


परिचय

ईश्वर के परम भक्त नारद मुनि की कहानियां हमें सिखाती हैं कि भक्ति में प्रेम, समर्पण और विनम्रता का होना कितना आवश्यक है। यह कथा नारद मुनि से जुड़ी है, जब भगवान विष्णु ने उन्हें वैकुंठ से यह कहकर बाहर भेज दिया कि “तुम्हें संगीत का ज्ञान नहीं है, इसलिए यहाँ बैठने का कोई अधिकार नहीं!”

भगवान की यह बात सुनकर नारद मुनि ने हजारों वर्षों तक कठोर साधना की, संगीत सीखा और जब उन्होंने भगवान के समक्ष गाया, तो स्वयं श्रीहरि आनंद में नृत्य करने लगे

यह कथा हमें यह सिखाती है कि संगीत केवल अभ्यास से नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और ईश्वर की कृपा से ही पूर्ण होता है

 वैकुंठ संगीत महोत्सव


वैकुंठ का दिव्य संगीत महोत्सव

एक बार वैकुंठ में भव्य संगीत महोत्सव का आयोजन हुआ। इसमें सभी देवता, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ सम्मिलित हुए। भगवान विष्णु स्वयं शेष शैया पर विराजमान थे और दिव्य संगीत का आनंद ले रहे थे।

नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्हें सबसे आगे बैठने का विशेषाधिकार प्राप्त था। वे भगवान विष्णु के चरणों के पास जाकर बैठ गए

इस दौरान हाहा-हुहू गंधर्व अपनी मधुर आवाज़ में संगीत प्रस्तुत कर रहे थे।

नारद जी गाने में तो रुचि नहीं रखते थे, लेकिन वे भगवान को निहारते हुए संगीत का आनंद ले रहे थे। भगवान विष्णु ने नारद जी की ओर देखा और मुस्कुराते हुए एक लीला करने की सोची

भगवान बोले—

“नारद, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

नारद जी ने हाथ जोड़कर कहा—
“भगवान, यह संगीत समारोह हो रहा है, तो मैं भी सुनने आया हूँ।”   ( इसे भी पढे और जाने- माँ शाकम्भरी देवी कौन हैं )

भगवान हँसकर बोले—

“लेकिन संगीत तो उसे सुनना चाहिए जिसे संगीत का ज्ञान हो! तुम्हें तो सुर, ताल, लय कुछ भी नहीं आता, फिर यहाँ क्यों बैठे हो?”

यह सुनकर सभी देवता हँसने लगे।

नारद जी का मन आहत हुआ।

भगवान बोले—
“अगर यहाँ बैठना है, तो पहले संगीत सीखकर आओ!”

यह सुनते ही नारद जी तुरंत वैकुंठ छोड़कर निकल पड़े।

 वैकुंठ संगीत महोत्सव


नारद जी की संगीत साधना

1️⃣ गुरु की खोज

नारद जी सबसे पहले ब्रह्मा जी के सचिव चित्रकेतु के पास गए और पूछा—

“इस ब्रह्मांड में सबसे बड़ा संगीतज्ञ कौन है?”

चित्रकेतु ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और उत्तर दिया—

“हिमालय की ऊँची चोटी पर एक वृक्ष के ऊपर एक उल्लू बैठा है। वही सबसे महान संगीतज्ञ है।”

नारद जी तुरंत हिमालय पहुंचे और उस उल्लू के चरणों में गिरकर बोले—

“गुरुदेव, मुझे संगीत सिखाइए!”

वह उल्लू कोई साधारण प्राणी नहीं था। वह स्वयं संगीत सम्राट गुरु काकभुशुंडी जी थे।

2️⃣ 2000 वर्षों की कठोर साधना

नारद जी ने 2000 वर्षों तक कठोर साधना करके संगीत सीखा।

जब उनकी शिक्षा पूर्ण हुई, तो गुरु काकभुशुंडी ने कहा—

“अब तुम महादेव के पास जाओ, उनसे भी संगीत की शिक्षा लो।”

 वैकुंठ संगीत महोत्सव

3️⃣ भगवान शिव से शिक्षा

नारद जी कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान शिव से 1000 वर्षों तक संगीत की शिक्षा ली

भगवान शिव उनके स्वर से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया।

 वैकुंठ संगीत महोत्सव

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जब नारद जी का अभिमान टूटा

अब नारद जी सोचने लगे—
“अब मैं इतना महान संगीतज्ञ बन चुका हूँ कि गंधर्वों और सरस्वती जी का संगीत भी मेरे सामने फीका पड़ जाएगा!”

भगवान विष्णु को यह अहंकार स्वीकार नहीं था।

जब नारद जी वैकुंठ लौट रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक अद्भुत नगर देखा, जहाँ सब लोग अत्यंत सुंदर थे, लेकिन हर किसी का शरीर अपंग था—

  • किसी का एक हाथ नहीं था,
  • किसी का एक पैर कटा हुआ था,
  • कोई अंधा था,
  • कोई गूंगा था

नारद जी ने पूछा, “यह कौन सा नगर है और यहाँ के लोग इतने सुंदर होकर भी अपंग क्यों हैं?”

लोगों ने उत्तर दिया—

“यह संगीत का नगर है और हम सभी संगीत की राग-रागिनियाँ हैं।”

नारद जी चौंक गए और पूछा, “लेकिन आप सब अपंग क्यों हैं?”

लोग बोले—

“हम पहले पूर्ण थे, लेकिन जब से एक नया गवैया नारद आया है और बेसुरे गीत गा रहा है, तब से हमारी यह हालत हो गई है!”

नारद जी यह सुनते ही समझ गए कि उनकी संगीत साधना अपूर्ण है।

 वैकुंठ संगीत महोत्सव


जब नारद जी ने वैकुंठ में गाया और भगवान नृत्य करने लगे

अब नारद जी फिर से विनम्र होकर महादेव के पास गए। महादेव ने कहा—

“जिसके प्रति तुम्हारे चित्त में प्रतिस्पर्धा थी, उन्हीं के चरणों में जाओ!”

नारद जी हाहा-हुहू गंधर्व के पास गए और क्षमा मांगी।

तीन दिन बाद वैकुंठ में फिर से संगीत समारोह हुआ।

  • पहले हाहा-हुहू गंधर्व ने गाया,
  • फिर सरस्वती माता ने प्रस्तुति दी,
  • अंत में नारद जी का नाम पुकारा गया

नारद जी ने भगवान विष्णु के चरणों में प्रणाम किया और नेत्र बंद करके गाना शुरू किया।

जैसे ही नारद जी ने गाया, भगवान विष्णु शेष शैया से उठे और स्वयं नृत्य करने लगे!

भगवान ने प्रसन्न होकर सरस्वती जी की दिव्य वीणा ‘देवदत्त’ नारद जी को भेंट कर दी

 वैकुंठ संगीत महोत्सव


निष्कर्ष

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि भक्ति में अहंकार का स्थान नहीं है। जब हम प्रेम और समर्पण से भगवान की आराधना करते हैं, तभी वे प्रसन्न होते हैं।

नारद मुनि की यह कथा यह भी दर्शाती है कि सच्ची साधना केवल अभ्यास नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा से पूर्ण होती है


FAQs

1. नारद मुनि को संगीत क्यों सीखना पड़ा?
भगवान विष्णु ने उन्हें वैकुंठ से यह कहकर भेज दिया कि वे संगीत नहीं जानते।

2. नारद जी ने संगीत कहाँ सीखा?
उन्होंने पहले गुरु काकभुशुंडी उल्लू से 2000 वर्षों तक और फिर महादेव से 1000 वर्षों तक संगीत सीखा।

3. भगवान विष्णु ने नारद जी को क्या भेंट दी?
भगवान ने उन्हें सरस्वती माता की “देवदत्त वीणा” प्रदान की।

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