जब भक्त की डाँट सुनकर खुद नमक लेने पहुंचे भगवान मदनमोहन – वृंदावन के ठाकुर मदनमोहन जी की कथा
परिचय
वृंदावन धाम भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से भरा हुआ है। यह धरा केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि भक्तों और भगवान के प्रेम की अद्भुत कहानियों का जीवंत प्रमाण है। ठाकुर मदनमोहन जी की यह कथा भक्त और भगवान के मधुर संबंध को दर्शाती है। यह कथा सनातन गोस्वामी जी के जीवन से जुड़ी हुई है, जब भगवान स्वयं अपने भक्त की डाँट सुनकर नमक लेने का निश्चय करते हैं।
ठाकुर मदनमोहन जी और सनातन गोस्वामी की भक्ति कथा
भगवान को सनातन गोस्वामी जी का प्रसाद पसंद नहीं आया
सनातन गोस्वामी जी अत्यंत तपस्वी और वैराग्यवान संत थे। उनका जीवन पूर्णतः भक्ति और साधना के लिए समर्पित था। वे संसार की मोह-माया से दूर रहकर वृंदावन में तपस्या कर रहे थे। उनका नियम था कि वे केवल भिक्षा से प्राप्त भोजन ग्रहण करते थे।
उनके भोजन में केवल सूखी बाटी होती थी, जिसमें न तो नमक होता था, न घी। यह साधारण भोजन भगवान मदनमोहन जी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता था।
भगवान श्रीकृष्ण, जो विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों के स्वामी थे, अपने प्रिय भक्त की यह तपस्या देखकर मुस्कुरा उठे। परंतु ठाकुर मदनमोहन जी का चटोरा स्वभाव इस रूखे-सूखे भोजन को देखकर थोड़ा असंतुष्ट था। एक दिन वे अपने भक्त से बोले—
“बाबा! यह सूखी बाटी मेरे गले से नहीं उतरती। इसमें थोड़ा सा नमक तो डाल दीजिए!”
सनातन गोस्वामी जी अपने ठाकुर जी की इस बात पर मुस्कुराए और बोले—
“हे ठाकुर! मैं तो एक वैरागी हूँ। महाप्रभु ने मुझे आदेश दिया है कि मैं संसार के किसी भी भोग-सुख में न फँसू। अगर मैं तुम्हारे लिए नमक लाने लगूं, तो कल घी भी मांगोगे, फिर गुड़ भी। इससे मेरा वैराग्य नष्ट हो जाएगा।”
ठाकुर मदनमोहन जी यह सुनकर थोड़े असहज हो गए। उन्हें अपने प्रिय भक्त की तपस्या का सम्मान करना था, लेकिन बिना नमक की बाटी खाना भी मुश्किल लग रहा था।
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ठाकुर मदनमोहन जी ने खुद अपनी भोग व्यवस्था की
ठाकुर मदनमोहन जी को जब यह समझ में आया कि सनातन गोस्वामी जी से नमक की कोई उम्मीद नहीं है, तो उन्होंने स्वयं अपने लिए भोग की व्यवस्था करने का निश्चय किया।
नाविक की नाव फँसी और भगवान की कृपा हुई
ठीक उसी समय एक व्यापारी रामदास कपूर अपनी नाव में व्यापारिक सामान लेकर यमुना के रास्ते आगरा जा रहे थे। जब उनकी नाव वृंदावन में आदित्य टीला के पास पहुँची, तो अचानक पानी में फँस गई।
नाविक और व्यापारी ने बहुत प्रयास किया, लेकिन नाव हिलने का नाम नहीं ले रही थी। तब एक छोटे से बालक ने वहां आकर व्यापारी से कहा—
“बाबा! अगर आप वृंदावन में सनातन गोस्वामी जी से प्रार्थना करेंगे, तो आपकी नाव तुरंत चल पड़ेगी।”
व्यापारी रामदास कपूर को यह सुनकर आश्चर्य हुआ, लेकिन उन्होंने आज्ञा मानकर तुरंत सनातन गोस्वामी जी के पास जाकर अपनी समस्या बताई।
सनातन गोस्वामी जी ने ठाकुर मदनमोहन जी से प्रार्थना की, और देखते ही देखते नाव स्वतः ही चल पड़ी। व्यापारी यह देखकर चकित रह गया और समझ गया कि यह कोई साधारण स्थान नहीं है।
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व्यापारी ने बनवाया मदनमोहन जी का मंदिर
रामदास कपूर जी ठाकुर जी की कृपा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने निश्चय किया कि वे वृंदावन में मदनमोहन जी का भव्य मंदिर बनवाएँगे।
उन्होंने न केवल मंदिर बनवाया, बल्कि ठाकुर जी के लिए भव्य भोग की भी व्यवस्था कर दी। अब ठाकुर जी को सूखी बाटी खाने की जरूरत नहीं रही, क्योंकि उनके प्रेमी भक्त ने उनके लिए भोजन, मंदिर और भोग की पूरी सुविधा कर दी थी।
भगवान ठाकुर मदनमोहन जी ने सनातन गोस्वामी जी को दी गोवर्धन शिला
सनातन गोस्वामी जी प्रतिदिन गोवर्धन परिक्रमा करने जाते थे। जब उनकी उम्र अधिक हो गई, तो ठाकुर मदनमोहन जी ने उन्हें एक गोवर्धन शिला प्रदान की।
उन्होंने कहा—
“बाबा, अब आपकी उम्र अधिक हो गई है। इसलिए, आप इस शिला की परिक्रमा कर लिया करें। इससे आपको संपूर्ण गोवर्धन परिक्रमा का फल प्राप्त होगा।”
यह गोवर्धन शिला आज भी श्री वृंदावन धाम के श्री राधा दामोदर मंदिर में सुरक्षित है और भक्तजन इसके दर्शन करने आते हैं।
निष्कर्ष
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि भगवान केवल प्रेम के भूखे होते हैं, न कि स्वादिष्ट व्यंजनों या भव्य मंदिरों के। भक्त की डाँट भी उन्हें स्वीकार होती है, क्योंकि उसमें सच्चा प्रेम होता है।
ठाकुर मदनमोहन जी और सनातन गोस्वामी जी की यह कथा इस बात का प्रमाण है कि यदि भक्त सच्चे मन से भगवान की सेवा करता है, तो भगवान स्वयं उसकी सेवा करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. ठाकुर मदनमोहन जी कौन हैं?
ठाकुर मदनमोहन जी भगवान श्रीकृष्ण का ही एक दिव्य स्वरूप हैं, जिनकी पूजा वृंदावन में होती है। वे भक्त सनातन गोस्वामी जी के प्रिय ठाकुर थे।
2. सनातन गोस्वामी जी कौन थे?
सनातन गोस्वामी जी श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। उन्होंने वृंदावन में वैराग्यपूर्ण जीवन व्यतीत किया और कई धार्मिक ग्रंथों की रचना की।
3. ठाकुर मदनमोहन जी ने व्यापारी की मदद कैसे की?
रामदास कपूर नामक व्यापारी की नाव जब यमुना में फँस गई, तो भगवान ने उन्हें सनातन गोस्वामी जी के पास भेजा। गोस्वामी जी की प्रार्थना से उनकी नाव स्वतः ही चल पड़ी।
4. गोवर्धन शिला का क्या महत्व है?
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह शिला सनातन गोस्वामी जी को दी थी, ताकि वे वृद्धावस्था में गोवर्धन परिक्रमा का फल प्राप्त कर सकें।
5. मदनमोहन जी का मंदिर कहाँ स्थित है?
मदनमोहन जी का मंदिर वृंदावन में स्थित है, जिसे रामदास कपूर जी ने बनवाया था। यह मंदिर आदित्य टीला पर स्थित है और इसकी वास्तुकला बहुत भव्य है।
🌿 भक्तों के लिए संदेश:
“अगर भक्ति सच्ची हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के लिए सबकुछ करने को तैयार हो जाते हैं।“
🙏 हरे कृष्ण! 🙏