पत्नी की बेवफ़ाई से राजा बने सन्यासी- राजा भर्तृहरि भोग से वैराग्य तक की अद्भुत कथा

पत्नी की बेवफ़ाई से राजा बने सन्यासी- भोग से वैराग्य तक की अद्भुत कथा


परिचय

इतिहास में अनेक सम्राट हुए, लेकिन सम्राट भर्तृहरि का जीवन एक अनूठी मिसाल है। उन्होंने अपार धन-संपत्ति, भोग-विलास और सत्ता होने के बावजूद संसार के मोह को त्यागकर संन्यास धारण किया। यह प्रश्न विचारणीय है कि जिस राजा के पास समस्त सांसारिक सुख-सुविधाएँ थीं, वह वैराग्य की ओर क्यों प्रवृत्त हुआ। इस कथा में प्रेम, मोह, विश्वासघात और आत्मबोध का समावेश है, जो हमें गहन जीवन दर्शन का बोध कराती है।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा (1)


भर्तृहरि का जीवन और राज्य

भर्तृहरि उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) के चक्रवर्ती सम्राट थे और उनके छोटे भाई महान सम्राट विक्रमादित्य थे। उनका शासनकाल वैभव और समृद्धि से परिपूर्ण था। युवा अवस्था में भर्तृहरि का मन भोग-विलास में अत्यधिक आसक्त था। उन्होंने आदेश दिया कि राज्य की सबसे सुंदर स्त्री को उनकी पत्नी बनाया जाए। इसके पश्चात उनका विवाह पिंगला नामक अत्यंत रूपवती स्त्री से हुआ। भर्तृहरि अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे और उनके प्रति अत्यधिक आसक्त थे। उन्होंने विक्रमादित्य को राज्य का कार्यभार सौंप दिया और स्वयं केवल भोग-विलास में लीन रहने लगे।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा (1)


पिंगला का अश्वपाल से आकर्षण

कुछ समय पश्चात, पिंगला महल की खिड़की से बाहर देख रही थी। उसने देखा कि अश्वशाला में घोड़ों की देखभाल करने वाला एक अश्वपाल अत्यंत हष्ट-पुष्ट और आकर्षक युवक था। पिंगला का मन उसकी ओर आकर्षित हो गया और वह गुप्त रूप से उससे मिलने लगी। यह एक राजपरिवार के लिए अपमानजनक था। जब यह बात गुप्तचरों द्वारा विक्रमादित्य को पता चली, तो वे अत्यंत व्यथित हुए। उन्हें यह निर्णय लेना कठिन प्रतीत हुआ कि वे अपने भाई भर्तृहरि को यह सत्य बताएँ या नहीं। किंतु अंततः उन्होंने भर्तृहरि को सत्य से अवगत कराने का निश्चय किया।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा (1)

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विक्रमादित्य पर झूठा आरोप

जब पिंगला को ज्ञात हुआ कि विक्रमादित्य सत्य उजागर कर सकते हैं, तो उन्होंने षड्यंत्र रचकर उन पर झूठा आरोप लगा दिया। राजसभा में एक झूठी गवाही प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया गया कि विक्रमादित्य किसी की पत्नी पर बुरी दृष्टि रखते हैं। भर्तृहरि, जो पिंगला के प्रेम में पूर्णतः आसक्त थे, ने बिना सत्य जाने अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को राज्य से निष्कासित कर दिया।


भर्तृहरि को अमर फल की प्राप्ति

एक दिन एक ब्राह्मण ने कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उसे अमर फल प्रदान किया। ब्राह्मण ने विचार किया कि यदि यह अमर फल राजा को दिया जाए, तो वे चिरंजीवी रहेंगे और प्रजा का कल्याण कर सकेंगे। उन्होंने यह फल सम्राट भर्तृहरि को भेंट कर दिया।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा


अमर फल का सफर: प्रेम, मोह और विश्वासघात

भर्तृहरि ने विचार किया कि यदि उनकी प्रिय पत्नी पिंगला अमर हो जाए, तो वे सदा साथ रह सकेंगे। उन्होंने वह फल पिंगला को दे दिया। पिंगला ने उस फल को अपने प्रिय अश्वपाल को दे दिया। अश्वपाल को भी राजमहल की एक नर्तकी से प्रेम था, अतः उसने वह अमर फल नर्तकी को दे दिया। अंततः यह अमर फल घूम-फिरकर उसी सम्राट भर्तृहरि के पास लौट आया। जब भर्तृहरि को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने अनुभव किया कि जिसे वे प्रेम समझ रहे थे, वह मात्र एक मोहजाल था।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा (1)


भर्तृहरि का वैराग्य और संन्यास

इस घटना के पश्चात भर्तृहरि का मन संसार से विरक्त हो गया। उन्होंने यह अनुभव किया कि प्रेम, भोग, धन-संपत्ति और सौंदर्य सभी अस्थायी हैं। उन्होंने अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को पुनः राज्य का कार्यभार सौंप दिया और स्वयं वैराग्य की ओर प्रस्थान किया। वह संसार का मोह त्यागकर घोर तपस्या में लीन हो गए और आत्मज्ञान की खोज में प्रवृत्त हो गए।

 भर्तृहरि और पिंगला की कथा

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भर्तृहरि की शिक्षा: भोग से वैराग्य तक का संदेश

भोग की कोई सीमा नहीं होती। जितना इसे भोगा जाता है, यह उतना ही अधिक आकर्षित करता है। संसार में कोई भी वस्तु स्थायी नहीं है – न सुख, न प्रेम, न सौंदर्य, न शरीर। सत्य, धर्म और वैराग्य ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए। असली आनंद सांसारिक भोगों में नहीं, अपितु आत्मज्ञान और वैराग्य में निहित है। भर्तृहरि की यह कथा दर्शाती है कि मनुष्य को मोह और भोग से ऊपर उठकर आत्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।


निष्कर्ष: भर्तृहरि की कथा से सीख

जो व्यक्ति संसार में स्थायी सुख की खोज करते हैं, वे अंततः दुखी होते हैं। मनुष्य को आत्मबोध और सत्य की खोज करनी चाहिए। भोग-विलास और सांसारिक प्रेम अस्थायी होते हैं, किंतु आत्मज्ञान और भक्ति ही सच्चे सुख का स्रोत हैं।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. सम्राट भर्तृहरि कौन थे?
भर्तृहरि उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट और सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे।

2. भर्तृहरि ने संन्यास क्यों लिया?
उन्होंने अनुभव किया कि भोग-विलास, प्रेम और संपत्ति अस्थायी हैं और संसार केवल एक मोहजाल है।

3. भर्तृहरि को अमर फल कैसे प्राप्त हुआ?
एक तपस्वी ब्राह्मण को इंद्रदेव ने अमर फल प्रदान किया था, जिसे उन्होंने राजा भर्तृहरि को भेंट कर दिया।

4. भर्तृहरि की कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि सांसारिक सुखों की लालसा मनुष्य को कभी संतोष प्रदान नहीं करती। सच्चा आनंद केवल आत्मज्ञान और वैराग्य में है।

5. क्या भर्तृहरि का जीवन हमें प्रेरणा देता है?
हाँ, भर्तृहरि का जीवन यह प्रेरणा देता है कि मनुष्य को सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।


 

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