गौरैया और समुद्र की प्रेरणादायक कथा: संघर्ष, धैर्य और भक्ति की अद्भुत गाथा
परिचय
यह कथा संघर्ष, संकल्प, भक्ति और अहंकार के विनाश की अद्भुत गाथा है। यह हमें सिखाती है कि कोई भी प्राणी छोटा नहीं होता और संकल्प व दृढ़ता से असंभव भी संभव हो सकता है। यह गौरैया की वह कहानी है, जिसने अपने घोंसले और अंडों को बचाने के लिए समुद्र नारायण के अहंकार को चुनौती दी और पूरे पक्षी समाज को अपने साथ खड़ा कर दिया।
भगवान विष्णु की कृपा से कैसे एक नन्ही सी गौरैया पक्षी समुद्र के अभिमान को तोड़ने में सफल रही, आइए इस प्रेरणादायक कथा को विस्तार से जानते हैं।
1. गौरैया का शांत जीवन और उसके अंडे
एक विशाल मंदिर के परिसर में समुद्र के किनारे एक घना वृक्ष था। उसी पर एक गौरैया पक्षी का घोंसला था। गौरैया वहीं रहती थी और मंदिर में गिरने वाले प्रसाद और हवन सामग्री से अपना जीवनयापन करती थी।
समय बीता और एक दिन गौरैया के छोटे-छोटे अंडे हुए। अब उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी। वह हर दिन मंदिर से भोजन लाकर अपने अंडों की देखभाल करती।
गौरैया को यह घोंसला सुरक्षित और स्थायी लगता था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
2. समुद्र का प्रचंड ज्वार और घोंसले का विनाश
एक दिन समुद्र में भयंकर ज्वार-भाटा आया। लहरें इतनी विशाल थीं कि उन्होंने उस वृक्ष को अपनी चपेट में ले लिया, जिस पर गौरैया का घोंसला था।
लहरें उठीं, वृक्ष हिल गया और देखते ही देखते गौरैया का घोंसला समुद्र में बह गया।
जब गौरैया लौटकर आई, तो उसने देखा कि उसका घोंसला लापता था। उसके अंडे समुद्र की लहरों में डोल रहे थे। उसकी आंखों में आंसू आ गए।
वह समुद्र के किनारे बैठ गई और रोते हुए समुद्र नारायण से प्रार्थना करने लगी –
“हे समुद्र देव! मैंने किसी का बुरा नहीं किया, मेरे अंडे निर्दोष हैं। कृपया मुझे मेरे अंडे लौटा दें!” ( इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )
3. समुद्र का अहंकार और गौरैया का संकल्प
समुद्र नारायण ने गौरैया की प्रार्थना सुनी, लेकिन वे अहंकार से हंस पड़े और बोले –
“तुम इतनी छोटी सी गौरैया मुझसे प्रार्थना कर रही हो? क्या तुम्हारा कोई अस्तित्व भी है?”
“इस ब्रह्मांड में जितने जीव पृथ्वी पर रहते हैं, उससे कई गुना अधिक मेरे भीतर हैं। मैं प्रचंड समुद्र हूं, पृथ्वी का सबसे विशाल राज्य मेरा है। मैं तुम्हारी इतनी छोटी सी बात क्यों सुनूं?”
गौरैया ने उत्तर दिया –
“यदि मैं जीवित हूं, मेरे प्राण हैं, तो मेरा अस्तित्व भी है। मैं अपनी चोंच में जल भर-भर कर तुम्हें सुखा दूंगी!”
समुद्र नारायण फिर जोर-जोर से हंसने लगे और बोले –
“राम जी ने भी प्रार्थना की थी, तब भी मैंने मार्ग नहीं दिया, फिर तुम किस गिनती में हो?”
गौरैया बोली –
“यदि आप मेरे अंडे वापस नहीं लौटाएंगे, तो मैं अपने हक के लिए लड़ूंगी।”
4. गौरैया का प्रयास और पक्षी समाज का समर्थन
गौरैया ने अपनी चोंच में समुद्र का पानी भरना शुरू किया और दूर जाकर उसे गिराने लगी।
देखते ही देखते अन्य गौरैया पक्षी भी उसका साथ देने लगे।
धीरे-धीरे अन्य पक्षी समाजों – तोते, कबूतर, कौवे, हंस, मोर – ने भी गौरैया का समर्थन किया।
कुछ ही दिनों में करोड़ों पक्षी समुद्र से जल भर-भर कर बाहर फेंकने लगे।
समुद्र नारायण इस दृश्य को देखकर भी हंसते रहे और बोले –
“कर लो जितना प्रयास करना है, तुम मुझे नहीं सुखा सकते!”
लेकिन पक्षियों ने हार नहीं मानी।
5. नारद जी का हस्तक्षेप और गरुड़ देव की सहायता
जब देवर्षि नारद जी पृथ्वी पर आए, तो उन्होंने देखा कि सभी पक्षी समुद्र को सुखाने का प्रयास कर रहे थे।
उन्होंने पूछा –
“तुम सब क्या कर रहे हो?”
पक्षियों ने उत्तर दिया –
“हम समुद्र को उसके अहंकार का दंड दे रहे हैं!”
नारद जी सीधे गरुड़ जी के पास गए और बोले –
“ये सभी पक्षी आपके वंशज हैं, क्या आप समुद्र के अहंकार को तोड़ने में उनकी मदद नहीं करेंगे?”
गरुड़ जी भगवान विष्णु के पास गए और पूरी कथा सुनाई। भगवान विष्णु बोले –
“यह समुद्र के अहंकार को तोड़ने का समय है!”
6. भगवान विष्णु का हस्तक्षेप और समुद्र का पश्चाताप
भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी कि वह समुद्र को द्वादश सूर्य (बारह सूर्य) के समान ताप से तपाने लगे। ( इसे भी जरूर पढे- क्या हुआ जब नासा ने भेजे एलियन को संदेश )
सुदर्शन चक्र की गर्मी से समुद्र तेजी से सूखने लगा।
जीव-जंतु मरने लगे और पानी वाष्पित होने लगा।
अब समुद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ।
“त्राहिमाम! त्राहिमाम! प्रभु, मेरी भूल क्षमा करें। मैं अपने अहंकार का त्याग करता हूं और गौरैया को उसके अंडे लौटा देता हूं!”
भगवान विष्णु ने समुद्र को क्षमा कर दिया और गौरैया का घोंसला वापस कर दिया।
गौरैया की आंखों में आंसू थे, पर यह विजय के आंसू थे।
7. निष्कर्ष: कथा से क्या सीख मिलती है?
- कोई भी प्राणी छोटा नहीं होता।
- संघर्ष और धैर्य से कुछ भी संभव है।
- अहंकार का नाश अवश्य होता है।
- सत्य और निष्ठा के मार्ग पर चलने वालों की भगवान भी सहायता करते हैं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. गौरैया और समुद्र की यह कथा हमें क्या सिखाती है?
यह कथा हमें संघर्ष, धैर्य, भक्ति और संकल्प की शक्ति सिखाती है।
2. समुद्र नारायण ने गौरैया का घोंसला क्यों नहीं लौटाया?
क्योंकि वे अपने अहंकार में थे कि एक छोटी सी पक्षी का कोई अस्तित्व नहीं है।
3. गौरैया समुद्र को सुखाने में कैसे सफल हुई?
उसके संकल्प को देखकर अन्य पक्षी भी साथ आए और भगवान विष्णु ने उसकी सहायता की।
4. भगवान विष्णु ने समुद्र को कैसे दंड दिया?
उन्होंने सुदर्शन चक्र से समुद्र को द्वादश सूर्य की गर्मी से तपाना शुरू किया।
5. इस कथा का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
यह दर्शाता है कि जो अपने कर्तव्य और धर्म के प्रति समर्पित होते हैं, उनकी सहायता स्वयं भगवान करते हैं।
✨ “जो अपने संकल्प और भक्ति में अडिग रहते हैं, उन्हें भगवान का साथ अवश्य मिलता है!” 🚩🙏