भगवान जगन्नाथ जी की अनवसर लीला: तांत्रिक की कहानी और दिव्य रहस्य

भगवान जगन्नाथ जी की अनवसर लीला: तांत्रिक की कहानी और दिव्य रहस्य


परिचय

जगन्नाथ पुरी मंदिर की परंपराएं और लीलाएं भारतीय संस्कृति और आस्था का अद्भुत उदाहरण हैं। इन लीलाओं में से एक है अनवसर लीला, जो भगवान जगन्नाथ के गोपनीय और दिव्य पक्ष को दर्शाती है। इस कथा में हम एक तांत्रिक योगी कमाम गिरी की कहानी जानेंगे, जिसने भगवान की अनवसर लीला को समझने की कोशिश की, लेकिन अंततः उसकी योग शक्ति भगवान की लीला के आगे पराजित हो गई।

Jagannath Ji Ki Anavasara Leela


अनवसर काल का महत्व

अनवसर काल हर साल भगवान जगन्नाथ के मंदिर में मनाया जाता है। यह 15 दिनों की अवधि होती है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा बीमार होने का अभिनय करते हैं। इस समय उनके विग्रहों की गोपनीय सेवा की जाती है।

  • इस दौरान मंदिर के द्वार बंद रहते हैं।
  • केवल दैता पति पुजारी ही भगवान की सेवा कर सकते हैं।
  • किसी अन्य व्यक्ति का मंदिर में प्रवेश सख्त वर्जित होता है।

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कमाम गिरी योगी का परिचय

कठोर तपस्या और सिद्धियां

12वीं शताब्दी में कमाम गिरी नामक एक महान तांत्रिक योगी थे। उन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या करके अनेक सिद्धियां प्राप्त की थीं। उनकी शक्तियों ने उन्हें अहंकारी बना दिया था।

तीर्थ यात्रा का संकल्प

उन्होंने भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों की यात्रा का संकल्प लिया और अंत में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पुरी पहुंचे।

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तांत्रिक और भगवान के द्वार बंद होने का रहस्य

मंदिर के द्वार बंद देख तांत्रिक की प्रतिक्रिया

कमाम गिरी जब मंदिर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि मंदिर के द्वार बंद हैं। पुजारियों ने बताया कि भगवान जगन्नाथ बीमार हैं और किसी को दर्शन की अनुमति नहीं है।

  • तांत्रिक को यह बात अविश्वसनीय लगी।
  • उन्होंने पुजारियों से कहा कि भगवान को भौतिक बीमारी नहीं हो सकती।

राजा से भेंट और तर्क

तांत्रिक ने राजा कामेश्वर देव से मुलाकात की और उनसे द्वार खुलवाने की मांग की। राजा ने परंपराओं का हवाला देते हुए उनकी मांग ठुकरा दी। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )

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तांत्रिक का योग प्रदर्शन और मंदिर में प्रवेश

मधुमक्खी का रूप धारण करना

अपनी योग शक्ति का प्रदर्शन करते हुए तांत्रिक ने मधुमक्खी का रूप धारण किया और मंदिर के भीतर प्रवेश कर गए।

कमल पुष्प में फंसना

मंदिर के अंदर उन्होंने एक अष्टदल कमल देखा। मधुमक्खी के रूप में वह कमल पर बैठ गए।

  • कमल तुरंत बंद हो गया, और तांत्रिक उसमें फंस गए।
  • उन्होंने बाहर निकलने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहे।
  • अंततः उन्होंने भगवान जगन्नाथ और अपने इष्टदेव महादेव से प्रार्थना की।

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तांत्रिक की दूसरी कोशिश और भगवान की लीला

अदृश्य रूप में प्रवेश

कमाम गिरी ने दूसरी बार अदृश्य रूप धारण कर मंदिर के भीतर प्रवेश किया। ( इसे भी जरूर पढे-  क्या हुआ जब नासा ने भेजे एलियन को संदेश )

  • उन्होंने देखा कि आठ दिशाओं में आठ सुंदर देवियां खड़ी थीं।
  • देवियों ने उन्हें देखकर हंसी उड़ाई, जिससे तांत्रिक घबरा गए।

भगवान की कृपा और अहंकार का अंत

इस अनुभव के बाद तांत्रिक को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने राजा और भगवान से माफी मांगी और अपनी शक्तियों का त्याग कर भगवान की शरण में आ गए।

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तांत्रिक का पश्चाताप और जीवन परिवर्तन

जगन्नाथ जी की शरणागति

कमाम गिरी ने भगवान की शरण में आकर अपना शेष जीवन पुरी में बिताने का निर्णय लिया।

  • उन्होंने पुरी में एक मठ की स्थापना की।
  • इस मठ में कमामेश्वर महादेव को स्थापित किया गया।

मठ का वर्तमान स्थिति

आज भी यह मठ पुरी में मौजूद है, लेकिन यह अत्यंत जर्जर अवस्था में है।


कथा से मिलने वाली शिक्षा

  1. अहंकार का त्याग करें: भगवान की कृपा केवल विनम्र और समर्पित हृदय को प्राप्त होती है।
  2. भक्ति का महत्व: भक्ति का सार भाव और समर्पण में है, न कि योग शक्ति या तांत्रिक विधाओं में।
  3. परंपराओं का सम्मान करें: सदियों पुरानी परंपराएं भगवान की लीला और उनकी गोपनीयता को बनाए रखने के लिए होती हैं।

निष्कर्ष

भगवान जगन्नाथ जी की अनवसर लीला उनके भक्तों के लिए एक अद्भुत शिक्षा है। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान की लीला को समझने के लिए अहंकार और जिद छोड़कर उनकी शरण में आना आवश्यक है।


FAQs

  1. अनवसर काल का क्या महत्व है?
    अनावसर काल भगवान जगन्नाथ की गोपनीय सेवा का समय है, जब मंदिर के द्वार भक्तों के लिए बंद रहते हैं।
  2. कमाम गिरी कौन थे?
    कमाम गिरी एक तांत्रिक योगी थे, जिन्होंने भगवान जगन्नाथ की लीला को समझने की कोशिश की थी।
  3. तांत्रिक ने मंदिर के अंदर क्या देखा?
    उन्होंने अष्टदल कमल, आठ देवियों और भगवान की अद्भुत लीला का अनुभव किया।
  4. इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
    यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान की लीला को समझने के लिए भक्ति और समर्पण जरूरी है।
  5. कमाम गिरी ने अंत में क्या किया?
    उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और आजीवन पुरी में रहकर भगवान जगन्नाथ की सेवा की।

हरे कृष्ण! जय जगन्नाथ!


 

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