माँ शाकम्भरी और दुर्गमासुर की पौराणिक कथा: एक शक्तिशाली देवी का महिमामंडन

प्राचीन काल से भारत में देवी-देवताओं की अनंत कथाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं, जिनमें शक्ति की उपासना विशेष स्थान रखती है। ऐसी ही एक अद्भुत और प्रेरणादायक कथा है माँ शाकम्भरी और दुर्गमासुर की। यह कथा केवल एक धार्मिक कहानी ही नहीं है, बल्कि यह सच्चाई की विजय और भक्तों की आस्था का प्रतीक है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों—देवी पुराण, शिव पुराण—और अन्य ग्रंथों में इस कथा का वर्णन किया गया है, जो माँ शाकम्भरी के शाक्त रूप और उनके द्वारा दुष्ट असुर दुर्गमासुर का संहार की कहानी कहता है ।

दुर्गमासुर का उदय और ब्रह्मा से प्राप्त वरदान

कथा का आरंभ महादैत्य रूरु के पुत्र दुर्गमासुर से होता है, जो हिरण्याक्ष के वंश में पैदा हुआ था। दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की, और इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे चारों वेदों को अपने अधीन करने का वरदान दिया। वेदों के हाथ से चले जाने पर, सभी धार्मिक क्रियाएँ लुप्त हो गईं और ब्राह्मणों ने अपना धर्म छोड़ दिया। इस कारण से यज्ञ और अनुष्ठान बंद हो गए, और देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी। इसका प्रभाव इतना भयंकर हुआ कि पृथ्वी पर एक भयानक अकाल आ गया। चारों ओर हाहाकार मच गया, वनस्पति सूख गईं, और प्राणी भूख-प्यास से मरने लगे।

देवताओं की हार और जगदम्बा का प्रकट होना

जब दुर्गमासुर का आतंक बढ़ता गया, तो देवताओं ने उससे युद्ध किया, लेकिन असफल रहे। देवताओं की हार ने उन्हें हताश कर दिया और वे शिवालिक पर्वत की शरण में जा छिपे। वहीं उन्होंने माँ जगदम्बा का ध्यान किया और उनकी स्तुति करने लगे। देवताओं की प्रार्थना से महामाया माँ पार्वती का एक और रूप, जिसे महेशानी और भुवनेश्वरी के नाम से जाना जाता है, प्रकट हुआ।

माँ शाकम्भरी का जन्म, जो कि आयोनिजा यानी बिना माता-पिता के जन्मी थीं, संसार के कल्याण के लिए हुआ। संसार की दुर्दशा देखकर माँ की आँखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित हुई। माँ के शरीर पर सौ नैत्र प्रकट हुए, और उनकी करुणा के कारण समस्त संसार में भारी वृष्टि हुई। जलाशयों और नदियों में पानी भर गया, और सूखा समाप्त हो गया। माँ के इस रूप को शताक्षी कहा गया।

माँ शाकम्भरी और दुर्गमासुर की पौराणिक कथा

माँ शाकम्भरी का अद्वितीय स्वरूप

जब संसार में फिर से जल की उपलब्धता हुई, तो माँ शाकम्भरी ने अपना दिव्य स्वरूप धारण किया। वे कमलासन पर विराजमान थीं, उनके चार हाथों में कमल, बाण, शाक-फल और एक तेजस्वी धनुष था। उन्होंने अपने शरीर से अनेकों शाक (सब्जियाँ) उत्पन्न कीं, जिन्हें खाकर संसार की भूख शांत हुई। इस कारण उनका नाम शाकम्भरी पड़ा।

माँ शाकम्भरी ने पहले पहाड़ी की ओर देखा और वहाँ सराल नामक कंदमूल उत्पन्न हुआ। इस प्रकार माँ शाकम्भरी देवी ने न केवल प्राकृतिक आपदा को खत्म किया, बल्कि पृथ्वी पर फिर से हरियाली लौटाई। यह स्वरूप कृषि और प्रकृति की देवी के रूप में पूजनीय बन गया।

दुर्गमासुर का संहार और भूरादेव को अमरत्व का वरदान

दुर्गमासुर को रिझाने के लिए माँ शाकम्भरी ने एक सुंदर रूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाया। दुर्गमासुर और अन्य असुर जब उन्हें पकड़ने आए, तब माँ ने अपने दिव्य तेज से पृथ्वी और स्वर्ग के बाहर एक घेरा बना दिया और दुर्गमासुर का संहार कर दिया। इस भयंकर युद्ध के बाद, माँ ने अपने भक्त भूरादेव (भैरव का एक रूप) को अमरत्व का वरदान दिया।

आज भी, माँ शाकम्भरी के दर्शन से पहले भक्त भूरादेव के दर्शन करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि बिना भूरादेव के आशीर्वाद के, माँ शाकम्भरी के दर्शन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता।

पौराणिक स्थल और माँ का मंदिर

जहां माँ शाकम्भरी ने दुर्गमासुर का वध किया, वह स्थल आज वीरखेत के रूप में जाना जाता है। वहीं पर माँ शाकम्भरी देवी का भव्य मंदिर स्थित है, जो हरी-भरी घाटियों और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है। इस मंदिर के पास स्थित भूरादेव का मंदिर भी विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

शताक्षी, शाकम्भरी और दुर्गा: एक ही देवी के विभिन्न रूप

देवी पुराण के अनुसार, शताक्षी, शाकम्भरी और दुर्गा तीनों एक ही देवी के विभिन्न नाम हैं। यह विभिन्न रूप यह संदेश देते हैं कि माँ शाकम्भरी न केवल जीवनदायिनी हैं, बल्कि धर्म और सत्य की रक्षक भी हैं। उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद से संसार का कल्याण होता है, और दुर्गमासुर जैसे असुरों का नाश कर वे धर्म की स्थापना करती हैं।

माँ शाकम्भरी और दुर्गमासुर की पौराणिक कथा

निष्कर्ष

माँ शाकम्भरी की यह कथा केवल एक धार्मिक कहानी नहीं है, बल्कि यह मानवीय जीवन की सच्चाई और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाती है। यह कथा हमें सिखाती है कि जब भी संसार में अधर्म बढ़ता है, माँ अपनी कृपा से धर्म और सत्य की रक्षा करती हैं। माँ शाकम्भरी का यह दिव्य स्वरूप हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में धर्म, करुणा, और प्रकृति के प्रति सच्ची भक्ति रखें।

माँ शाकम्भरी की कृपा से संसार में पुनः हरियाली और समृद्धि का आगमन होता है, और यह प्रेरणादायक कथा उनके महान योगदान और उनकी करुणा का प्रतीक है।

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