गणपति भट्ट की निष्ठा: भगवान गणेश के परम भक्त की अनोखी कथा
परिचय
निष्ठा और भक्ति दो ऐसे गुण हैं जो किसी भी साधक को ईश्वर के निकट ले जाते हैं। गणपति भट्ट की कहानी हमें यही सिखाती है कि भक्ति में निष्ठा होनी चाहिए, कट्टरता नहीं। गणपति भट्ट, भगवान गणेश के परम भक्त थे। उनका यह विश्वास इतना दृढ़ था कि वे केवल वहीं जाते थे जहां गणेश जी का मंदिर होता। उनकी निष्ठा ने जगन्नाथ भगवान को भी प्रभावित किया और एक अद्भुत लीला प्रकट हुई। आइए इस प्रेरणादायक कथा को विस्तार से समझते हैं।
गणपति भट्ट: एक निष्ठावान भक्त
गणपति भट्ट एक ऐसे भक्त थे जिनकी निष्ठा भगवान गणेश में अटूट थी। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य भगवान गणेश की पूजा करना था। वह किसी भी नगर में तभी जाते जब उन्हें पता चलता कि वहां गणेश जी का मंदिर है। उनके लिए बाकी देवताओं की उपासना गौण थी।
उनकी भक्ति और निष्ठा का यह रूप हमें सिखाता है कि भगवान तक पहुंचने का मार्ग भले ही अलग हो, लेकिन भावनाओं में पवित्रता होनी चाहिए। ( इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )
कट्टरता और निष्ठा का अंतर
यहाँ एक महत्वपूर्ण बिंदु समझने की आवश्यकता है—कट्टरता और निष्ठा में बड़ा अंतर है।
- कट्टरता: केवल अपने देवता को मानना और बाकी देवताओं को अस्वीकार करना।
- निष्ठा: अपने इष्ट देवता में पूर्ण विश्वास रखते हुए, अन्य देवताओं का भी सम्मान करना।
गणपति भट्ट निष्ठावान थे, लेकिन उनके हृदय में यह भाव था कि वे केवल गणेश जी के उपासक हैं। यह निष्ठा उन्हें जगन्नाथ पुरी की ओर ले गई, जहां उनकी भक्ति की परीक्षा हुई।
जगन्नाथ पुरी की यात्रा: निष्ठा की परीक्षा
गणपति भट्ट एक दिन जगन्नाथ पुरी पहुंचे। किसी ने उनसे कहा कि पुरी में गणेश जी का मंदिर है। यह सुनते ही वह वहाँ जाने को तैयार हो गए।
लेकिन जब उन्होंने वहाँ पहुँचकर सत्य जाना, तो उन्हें यह पता चला कि वहाँ कोई गणेश जी का मंदिर नहीं है, बल्कि जगन्नाथ भगवान का मंदिर है।
व्याकुलता और समर्पण
यह जानकर गणपति भट्ट का मन व्याकुल हो गया। वह समुद्र के किनारे बैठकर भगवान गणेश का स्मरण करने लगे और प्रार्थना करने लगे—
“हे गणपति भगवान, मेरी निष्ठा टूटने न पाए। मैं सदा आपका ही भक्त रहूँ।”
उनकी यह पुकार उनके हृदय की सच्ची भक्ति का प्रमाण थी।
भगवान जगन्नाथ की लीला
गणपति भट्ट की सच्ची निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान जगन्नाथ ने एक नन्हे बालक का रूप धारण किया और गणपति भट्ट के पास पहुँचे। बालक के रूप में भगवान ने पूछा,
“भैया, आप क्यों रो रहे हो?”
गणपति भट्ट ने बालक को अपनी व्यथा सुनाई कि उन्हें गणेश जी का मंदिर बताया गया था, लेकिन यहाँ तो भगवान कृष्ण हैं।
बालक का समाधान
बालक ने कहा—
“तुम्हें किसी ने गलत बताया है। यहाँ जो भगवान हैं, वह गणेश जी ही हैं। तुम उनकी परीक्षा लो। आँखों पर पट्टी बाँधकर उन्हें स्पर्श करो। यदि उनकी सूंड, कान और पेट तुम्हें गणेश जी के समान लगें, तो विश्वास कर लेना।”
भगवान की परीक्षा: निष्ठा की जीत
गणपति भट्ट ने बालक की बात मानी। उन्होंने आँखों पर पट्टी बाँधकर भगवान जगन्नाथ को स्पर्श करना शुरू किया।
- सबसे पहले उन्होंने नाक को स्पर्श किया—उन्हें लगा कि यह तो लंबी सूंड है।
- फिर उन्होंने कान को छुआ—बड़े-बड़े कान अनुभव हुए।
- जब उन्होंने पेट को छुआ, तो वह लंबोदर के समान प्रतीत हुआ।
गणपति भट्ट ने कहा—
“हाँ, यह तो गणेश जी ही हैं।”
भगवान का साक्षात्कार
जैसे ही गणपति भट्ट ने आँखों से पट्टी हटाई, उन्हें भगवान जगन्नाथ का दिव्य स्वरूप दिखाई दिया। वहाँ गणेश जी नहीं थे, बल्कि स्वयं श्रीकृष्ण थे। यह देखकर गणपति भट्ट के मन में संशय उत्पन्न हुआ।
उन्होंने कहा—
“मायावी कृष्ण! जब आँख बंद करता हूँ तो गणेश जी प्रतीत होते हैं, और आँख खोलने पर आप दिखाई देते हैं। मेरी निष्ठा भंग हो रही है।”
तभी भगवान जगन्नाथ ने अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर कहा—
“हे गणपति भट्ट, मैं ही गणेश हूँ, मैं ही शिव हूँ, मैं ही हनुमान हूँ। सब देवता मेरे ही विभिन्न स्वरूप हैं। भेद दृष्टि मत रखो। निष्ठा रखो, लेकिन कट्टरता से बचो।”
संदेश: भक्ति में समर्पण और समभाव
भगवान जगन्नाथ ने गणपति भट्ट को यह सिखाया कि ईश्वर एक ही हैं, लेकिन उनके स्वरूप अनेक हैं। सभी देवता एक ही परम सत्य के विभिन्न रूप हैं। ( इसे भी जरूर से जाने – मिला रेपा: तांत्रिक से संत बनने की अद्भुत यात्रा )
मुख्य सीख:
- अपने इष्ट देवता में निष्ठा रखो।
- अन्य देवताओं का भी सम्मान करो।
- भक्ति में भेदभाव न करो।
- सभी देवताओं में अपने इष्ट का दर्शन करो।
सनातन धर्म का सौंदर्य
सनातन धर्म हमें यह स्वतंत्रता देता है कि हम अपने इष्ट को चुन सकते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम बाकी देवताओं का तिरस्कार करें।
वृंदावन रीति और भागवत का संदेश
वृंदावन में राधा-कृष्ण को अलग नहीं माना जाता। वे युगल रूप में पूजनीय हैं। भागवत महापुराण में वेदव्यास जी ने भी किसी विशेष देवता का नाम नहीं लिया, बल्कि कहा—
“सत्यम परम धीमहि।”
यहाँ परम सत्य को ही वंदन किया गया है।
निष्कर्ष
गणपति भट्ट की कथा हमें सिखाती है कि निष्ठा और समभाव भक्ति के मूल स्तंभ हैं। ईश्वर की भक्ति में कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं है। भगवान सभी स्वरूपों में एक ही हैं।
इसलिए, जहाँ भी जाएं, अपने इष्ट देवता को हृदय में धारण करके सभी देवताओं का सम्मान करें। यह भक्ति की सच्ची पहचान है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. गणपति भट्ट कौन थे?
गणपति भट्ट भगवान गणेश के परम भक्त थे, जिनकी निष्ठा इतनी अटूट थी कि उन्होंने केवल गणेश जी को ही अपना इष्ट माना।
2. गणपति भट्ट की कथा का मुख्य संदेश क्या है?
इस कथा का मुख्य संदेश है कि निष्ठा रखें, लेकिन भक्ति में भेदभाव न करें। सभी देवता एक ही परम सत्य के रूप हैं।
3. भगवान जगन्नाथ ने गणपति भट्ट को क्या सिखाया?
भगवान जगन्नाथ ने सिखाया कि वे ही सभी देवताओं के स्वरूप हैं। निष्ठा रखो, लेकिन कट्टरता से बचो।
4. भक्ति में निष्ठा का क्या महत्व है?
निष्ठा भक्ति की आत्मा है। बिना निष्ठा के भक्ति अधूरी होती है।
5. सनातन धर्म में इतने देवताओं का क्या अर्थ है?
सनातन धर्म हमें यह स्वतंत्रता देता है कि हम अपने इष्ट को चुनें, लेकिन सभी देवताओं का सम्मान करें क्योंकि वे सभी एक ही परम सत्य के स्वरूप हैं।